Thursday, September 15, 2016

शहाबुद्दीन की रिहाई में केंद्र सरकार की लापरवाही भी जिम्मेदार??

शहाबुद्दीन की रिहाई में केंद्र सरकार की लापरवाही भी जिम्मेदार??
आज सारे देश में बिहार के दुर्दांत अपराधी/आरजेडी मौहम्मद शहाबुद्दीन की पटना हाईकोर्ट द्वारा जमानत पर रिहाई चर्चा का विषय बनी हुई है,सारे बिहार में आतंक की लहर दौड़ गयी है।

शाहबुद्दीन की रिहाई के लिए लालू प्रसाद और नितीश कुमार की सरकार के अलावा पटना हाईकोर्ट की भी कड़ी आलोचना देश भर में हो रही है।।

लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बाहुबली शहाबुद्दीन की रिहाई के लिए केंद्र सरकार की लापरवाही भी बराबर की जिम्मेदार है।

शहाबुद्दीन पर दर्जनों हत्याओं का आरोप है और वो लालू प्रसाद की आरजेडी का मुस्लिम चेहरा है ये सभी जानते हैं,बिहार में भले ही आरजेडी और जेडीयू मिलकर सरकार चला रहे हों लेकिन शहाबुद्दीन का बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से छत्तीस का आंकड़ा रहता है।।
जब से लालू प्रसाद के समर्थन से नितीश पुन बिहार के सीएम बने हैं तब से लालू के दम पर शहाबुद्दीन फिर से अपने रंग में आ गया है और हाल ही में एक पत्रकार राजदेव रंजन (अहीर) की हत्या में उसके गुर्गों की भूमिका पाई गयी है,

राजदेव रंजन की हत्या इसी साल 13 मई को हुई थी.
नितीश कुमार शहाबुद्दीन के विरुद्ध था इसलिए तीन दिन बाद ही राज्य सरकार ने इस हत्याकांड की सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी थी.
लेकिन केन्द्र सरकार कई महीने बीत जाने पर भी हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।
मृतक पत्रकार राजदेव की पत्नी आशा रंजन पिछले दिनों से दिल्ली में रहकर सरकार से गुहार लगा रही थी.
लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी मांग अनसुनी कर दी,

केंद्र सरकार की ओर से निश्चिन्त होते ही लालू ने नितीश सरकार पर दबाव डालकर हाईकोर्ट में सरकार की पैरवी कमजोर करवा दी जिससे मौहम्मद शहाबुद्दीन को जमानत मिल गयी!!!!!

अगर राजदेव रंजन हत्याकांड की सीबीआई जाँच की अनुशंसा केंद्र सरकार मान लेती तो शहाबुद्दीन की किसी भी दशा में रिहाई नही हो पाती!!

अब जाकर केंद्र सरकार नींद से जागी और 4 महीने बाद उसने इस हत्याकांड की सीबीआई जाँच की हरी झण्डी दी है।।

अब सवाल यह है कि एक दुर्दांत अपराधी जिसपर हिंदुत्ववादी कई बार पाकिस्तान से सम्बन्धो का आरोप लगाते रहे हैं उसके प्रति केंद्र सरकार की नरमी क्या संकेत देती है????

जो समझ में आता है वो ये है -----
इंदिरा गांधी ने कम कट्टर सिक्ख अकालियों को काटने के लिए घोर कट्टर जनरैल सिंह भिंडरावाले को बढ़ावा दिया था,जिसके परिणामस्वरूप पंजाब में आतंकवाद को बढ़ावा मिला और हजारो निर्दोष नागरिको सुरक्षा बलों की जान गयी,
इंदिरा गांधी को राजनितिक लाभ तो क्या मिलता उल्टा उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा!!!!

शेर/भेड़िये की सवारी कभी लाभ नही देती,
पर बीजेपी की केंद्र सरकार के रणनीतिकार सबक सीखने को तैयार नही हैं,
बीजेपी के समर्थको और रणनीतिकारों की सोच है कि ओवेसी बन्धुओ और उनकी घोर कट्टरवादी पार्टी एमआईएम को उत्तर भारत में बढ़ने दिया जाए जिससे मुस्लिम वोट बंट जाए और बीजेपी को लाभ मिले,

जबकि ओवेसी बन्धुओ की बिहार हो या दिल्ली कहीं भी सक्रियता का बीजेपी को कोई लाभ नही हुआ बल्कि मुस्लिमो को उसने बीजेपी के विरुद्ध रणनीतिक मतदान के लिए एकजुट कर दिया,

ओवेसी बन्धु जिस प्रकार देश में साम्प्रदायिक माहौल खराब कर रहे हैं उनके विरुद्ध केंद्र सरकारो को कड़ी क़ानूनी कार्यवाही करना चाहिए ,
पर बीजेपी के रणनीतिकार चाहते हैं कि ओवेसी अपना प्रभाव उत्तर भारतीय राज्यो में भी बढ़ाए!!!

ये आत्मघाती रणनीति पंजाब की तरह ही विनाशक सिद्ध होगी ये तय है इससे बीजेपी को कभी लाभ नही मिलेगा बल्कि ओवेसी के दम पर मुस्लिम और कट्टरता की ओर बढ़ेंगे जिससे उत्तर भारत में अगले दशक में भारी उथल पुथल हो सकती है।।

मोदी सरकार ने इंदिरा गांधी सरकार से सबक नही लिया और कई भिंडरावाला बनाने की तैयारी है,

शहाबुद्दीन के विरुद्ध सीबीआई जाँच की संस्तुति पर 4 महीने तक केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही,क्या ये इसी रणनीति का हिस्सा था???

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