पण्डावाद का विरोध उचित और क्षत्रिय संस्कारो का ज्ञान सर्वोत्तम है पर दोहरा आचरण क्यों-----
मैंने ये बड़ी अजीब बात महसूस की है कि कुछ क्षत्रिय धर्म के विद्वान जो ब्राह्मणवाद और पण्डावाद के कट्टर आलोचक हैं वो खुलकर या चोरी छिपे उन राजनेताओं को अपना आदर्श मानते हैं जो स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में सर्वाधिक ब्राह्मणवादी विचारधारा और वर्चस्व फ़ैलाने वाले दल कांग्रेस के सदस्य हैं!!!!
भला नेहरू गांधी परिवार से ज्यादा ब्राह्मणवाद, पण्डावाद और किसने फैलाया???
फिर दिग्विजय सिंह, अर्जुन सिंह जैसे गांधी नेहरू परिवार के चमचे राजनेताओं को पण्डावाद के विरोधी हमारे क्षत्रिय विद्वान अपना आदर्श क्यों मानते हैं????
(चोरी छिपे ही सही 😂😂😂)
ये रिश्ता क्या कहलाता है???🙈🙈🙈🙈
क्या आज के युग में पुरे देश में सभी दिशाओं में सिर्फ पण्डावाद ही क्षत्रियों का दुश्मन है या और भी नई चुनौतियां है??
हालाँकि ये 100% सत्य है कि स्वतन्त्रता के समय और उससे कुछ समय पूर्व राजपूत ही ब्राह्मण और वैश्य वर्ग के सामने चुनौती थे ,अत: अपना वर्चस्व बनाने के लिए इन्होंने जाट गूजर अहीर कुर्मी जैसे राजपूतो के सहयोगी किसान वर्गों को राजपूतो के विरुद्ध भड़काकर अपना उल्लू सीधा किया था।
ऐसा करके इन्होंने राजपूतो का वर्चस्व समाप्त किया और कांग्रेस सरकार के दम पर अपना राज स्थापित कर लिया।।
पर अब वेस्ट यूपी, हरियाणा, पंजाब ,राजस्थान ,गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली में कौन सा ब्राह्मणवाद बनियावाद हमारा रास्ता रोकने को खड़ा है???
बल्कि अब तो बिहार में भी क्षत्रिय और ब्राह्मण दोनों हाशिए पर हैं।
हमारे क्षत्रिय विद्वानों की बात 1940 से 1990 तक सत्य थी पर अब लगभग ओचित्यविहीन है।।
मेरे हिसाब से तो पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड के कुछ हिस्सों को छोड़कर अब पण्डावाद से हमारा मुकाबला है ही नही,
बल्कि नवसामन्तवाद (जाट अहीर गूजर पटेल), दलितवाद, आरक्षणवाद, मुस्लिमवाद ही हमारे सामने सबसे बड़ी चुनोती बनकर उभरे हैं।
हमे अपने वास्तविक दुश्मन की पहचान करना सीखना जरूरी है,तभी उससे मुकाबला कर पाएंगे।।
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