Monday, March 13, 2017

शीर्ष सत्ता (मुख्यमंत्री पद) के अभाव में मात्र सूबेदारी तक सिमित रहा यूपी का क्षत्रिय समाज----


स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत उत्तर प्रदेश में बने मुख्यमंत्रियों का विवरण-----

1--गोविन्द वल्लभ पन्त (ब्राह्मण) 8 वर्ष
2--बाबु सम्पूर्णानन्द (कायस्थ) 3 वर्ष
3--चन्द्रभानु गुप्ता(वैश्य) 4 वर्ष
4--सुचेता कृपलानी (ब्राह्मण) 4 वर्ष
5--चौधरी चरण सिंह (जाट) 2 वर्ष
6--त्रिभुवन नारायण सिंह(राजपूत) 7 महीना
7--कमलापति त्रिपाठी(ब्राह्मण) 2 वर्ष
8--हेमवती नन्दन बहुगुणा (ब्राह्मण)2 वर्ष
9--नारायण दत्त तिवारी(ब्राह्मण)4 वर्ष
10--रामनरेश यादव (अहीर) 2 वर्ष
11--बनारसी दासगुप्त (वैश्य) 1 वर्ष
12--वीपी सिंह (राजपूत) 1 वर्ष 10 माह
13--श्रीपति मिश्र (ब्राह्मण) 2 वर्ष
14--वीर बहादुर सिंह (राजपूत) 3 वर्ष
15--मुलायम सिंह यादव (अहीर) 7 वर्ष
16--कल्याण सिंह (लोधी ओबीसी) 4 वर्ष
17--मायावती (दलित ) 8 वर्ष
18--रामप्रकाश गुप्ता (वैश्य) 1 वर्ष
19--राजनाथ सिंह (राजपूत) 1 वर्ष 5 महीना
20--अखिलेश यादव (अहीर)5 वर्ष

ब्राह्मण (जनसंख्या 11%)---

कुल 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री 22 वर्ष यूपी में मुख्यमंत्री रहे।।इनके कार्यकालों में अधिकतर सरकारी नोकरियों और शासन प्रशासन में ब्राह्मणों का बोलबाला रहा।

अहीर(जनसंख्या 9%)---

कुल 3 अहीर मुख्यमंत्री 12 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे।
मुलायम सिंह यादव और अखिलेश के कार्यकाल में हर सरकारी भर्ती में अहीरों को जमकर प्राथमिकता मिली, कई लाख अहीरों को सरकारी सेवाओं में भर दिया,हर मलाईदार पदों पर अहीर बिठा दिए,
सरकारी ठेको, खनन आदि में अहीरों का ही बोलबाला रहा।
इन 12 वर्षों में अहीरों का सर्वांगीण विकास हुआ और वो यूपी में सर्वोच्च स्थिति में पहुंच गए
मुस्लिम और राजपूत इनके छोटे मोटे सूबेदार मात्र बनकर रह गए।

वैश्य(जनसंख्या 3%)---
कुल 3 वैश्य 6 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे

जाटव दलित (जनसंख्या 13%)----

अकेले मायावती 8 वर्ष तक यूपी की मुख्यमंत्री रही ,इन 8 वर्षों में मायावती ने अपनी जाति जाटव को सबल बना दिया, इनका कार्यकाल दलितों के वर्चस्व और स्वर्णो की गुलामी का कार्यकाल था जिसमे सर्वाधिक उत्पीड़न राजपूतों का हुआ था।

क्षत्रिय (जनसंख्या 15% )---

यूपी क्षत्रिय बाहुल्य प्रदेश है यहाँ 10% मुख्यधारा के राजपूत और 5% राजपूतो से सम्बंधित अलग अलग समाज यूपी में बिखरे हुए हैं जो राजपूतो के साथ ही मिलकर वोटिंग करते हैं
पर यूपी की सबसे बड़ी जाति क्षत्रिय 15% जनसंख्या के बावजूद शीर्ष सत्ता से वंचित रही है।
कुल 4 राजपूत बेचारे मात्र 6 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे, वो भी टुकड़ों के कार्यकाल में, इनमे भी वीरबहादुर सिंह के 3 वर्ष और राजनाथ सिंह के डेढ़ वर्ष ही क्षत्रिय समाज को सत्ता सुख मिल पाया।

लोधी(जनसंख्या 3%)--
अकेले कल्याण सिंह 4 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे,एक समय बेहद पिछड़ी हुई लोधी जाति कल्याण के कार्यकाल में उभर गयी।

कायस्थ(जनसंख्या 1%)----
बाबु सम्पूर्णानन्द 3 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे।

जाट (जनसंख्या 1.7%)----

जाट समाज से चौधरी चरण सिंह 2 बार में 2 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे।चौधरी चरण खुद सीएम रहे या उनके समर्थन से कोई अन्य बना ,
उन्होंने छोटे से कार्यकाल में जाटों को पुलिस, पीएसी, कृषि विभाग और अन्य सरकारी नोकरियों में भर दिया जिसका लाभ जाट समाज अब तक उठा रहा है।

उत्तर प्रदेश और बिहार में पिछले 70 वर्षों में सभी राजनैतिक दलों ने राजपूत समाज के साथ छल किया है,
हमे सिर्फ सूबेदारी मिली, सर्वोच्च सत्ता कभी कभार मिली, वो भी टुकड़ों के कार्यकाल में जिसका कोई महत्व नही।

सर्वोच्च सत्ता जिन समाजो को मिली उन्होंने अपना भरपूर विकास किया,वहीँ राजपूत समाज मात्र टुच्ची सूबेदारी (मंत्री/संत्री/विधायक/सांसद पद)ही प्राप्त कर पाया!!!

सर्वोच्च सत्ता के अभाव् में और सत्तासीन लोगो की उपेक्षा के चलते यूपी और बिहार का राजपूत समाज बुरी तरह पिछड़ चुका है।

इस बार यूपी में सबसे ज्यादा दिलोजान से किसी समाज ने बीजेपी को एकजुट होकर मतदान किया है तो वो राजपूत समाज है जिसने न सिर्फ अपना वोट दिया बल्कि बच्चे बच्चे ने बीजेपी का कार्यकर्ता बनकर अन्य समाज के भी वोट दिलवाए,

नरेंद्र मोदी जी के बाद यूपी में बीजेपी की हवा बनाने में सबसे बड़ा योगदान योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह की जनसभाओं का है,
आज जब बीजेपी सत्ता में आती दिख रही है तो मुख्यमंत्री पद के लिए कुछ लोग योगी जी और राजनाथ का नाम एकदम ख़ारिज करते हुए किसी सुनील बंसल, रामलाल, श्रीकांत शर्मा,मनोज सिन्हा, सिद्धार्थनाथ, स्मृति ईरानी, सतीश महाना, सुरेश खन्ना आदि का उल्लेख कर रहे हैं

कौन हैं ये लोग????
ये इतने ही काबिल थे तो योगी जी और राजनाथ को पूरे प्रदेश में धक्के खिलाने की बजाय इनकी जनसभाएं क्यों नही करवाई गयी???

योगी और राजनाथ बेचारे जाति से राजपूत हैं इसलिए इनका योगदान नकारना कुछ कथित राष्ट्रवादियो के लिए बड़ा आसान है !!!!

मुझे ऐसा लग रहा है कि निस्वार्थ भाव से राष्ट्रवादी भावना से ओतप्रोत होकर वोट करने वाले हमारे राजपूत समाज के साथ फिर से धोखा जरूर होगा।

ऐसा हुआ तो 2019 अधिक दूर नही है, लोकसभा चुनाव से पहले सपा, कांग्रेस, बसपा, रालोद में गठबंधन होगा जिनका कुल मत प्रतिशत 52% तक पहुंच जाएगा।और बीजेपी 40% पर सिमित रह जाएगी।

तब वो होगा जो आज असम्भव लगता है ,बिहार की तरह ही यूपी में भी यही हाल होगा।

सर्वश्रेष्ठ प्रशासनिक क्षमता देखी जाए तो राजनाथ सिंह सर्वश्रेष्ठ हैं
वहीँ जनभावनाएं या राष्ट्रवादी एजेंडा लागु करने की बात करें तो योगी आदित्यनाथ को सर्वहिन्दु समाज का समर्थन हासिल है।

जनभावनाओं का अपमान हुआ तो 2019 अधिक दूर नही हैं, तब हो सकता है हम भी बदली हुई भूमिका में दिखाई दें।

योगी जी हम सबकी प्राथमिकता हैं, पर उनकी कट्टर छवि को देखते हुए मोदी अमित शाह उन्हें सीएम नही बनाते हैं तो सर्वश्रेष्ठ प्रशासक राजनाथ सिंह को यूपी का सीएम बनाया जाए,
राजनाथ सिंह इसके लिए इंकार करते हैं तो ये यूपी के दो करोड़ क्षत्रियों के साथ बड़ा विश्वासघात होगा और क्षत्रिय समाज को यह मौका दोबारा नही मिलेगा।

1 comment:

  1. karan ye hai ki ham bahut jyada hindu aur desh bhakt bante hain aur moorkh bhi hain. Hamein politically muslim rajputon se hath milana chahiye aur apne se nikli jatiyon ko poore man samman ke sath apne se milana chaiye politically fir sare anti rajput kutte nachenge.Desh bhar me kai jatiyan hamse nikli hain unko jodo

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