Tuesday, August 30, 2016

क्या करणी सेना अपने उद्देश्य से भटक गयी?

राजस्थान में श्री राजपूत करणी सेना नाम का संगठन क्या सगोत्र विवाह करने वालो को राजपूत मानता है????

(सगोत्र विवाह यानि एक ही गोत्र/वंश के लड़का लड़की का विवाह यानि घोर पाप,क्योंकि एक ही गोत्र के भाई बहन माने जाते हैं)

क्या देशभर का राजपूत समाज ऐसे नीच विवाह को मान्यता देने को तैयार है???

ऐसा नीच कर्म करने वाले सम्पन्न, धनाढ्य, कथित राजसी परिवारो का महिमामण्डन करने और उन्हें राजपूत बताकर समर्थन करने वालो तुममे और शूद्र चांडालों में फिर फर्क क्या रह गया?????

फिर तुम राजपूत थोड़े ही रह गए,बल्कि गोलों से भी बदतर हो गए हो, थू है ऐसे नीच लोगो पर!!!!

हाल ही में एक राजपूत बेटी ने कुछ जाटों के उत्पीड़न से तंग होकर आत्महत्या कर ली!!!
क्या करनी सेना ने उस बेटी को न्याय दिलवाया???

एक आम राजपूत की लड़ाई लडने की बजाय अरबपति परिवार की लड़ाई वो भी उस परिवार जिसे महापाप करने के कारण समाज से बाहर किया गया हो,
लड़ने में इनका कौन सा स्वार्थ है???

खुद के आर्थिक स्वार्थ को कुछ लोग पूरे समाज की लड़ाई बता रहे हैं जबकि जाटों के उत्पीड़न से आत्महत्या करने वाली बेटी का परिवार न्याय को और समाज के सहयोग को तरस रहा है?????

वैसे भी जोधा अकबर को बन्द करवाने के संघर्ष में इनकी महान(?) भूमिका किसी से छुपी नही हैं

इन लोगो ने अपने आचरण से करणी माता के नाम का प्रयोग करने का अधिकार खो दिया,शर्म की बात है

अब आप लोग स्वयं निर्णय लें कि राजपूत हितों के लिए संघर्ष करने के लिए श्री राजपूत करणी सेना का गठन किया गया था,
क्या करणी सेना अपने उद्देश्य से भटक गयी है???

क्या करणी सेना आम राजपूतों की बजाय समाज से निष्कासित पथभृष्टो और धन्नासेठों की लड़ाई लड़कर आम राजपूतो को धोखा नही दे रही??

क्या करणी सेना महज असामाजिक और स्वार्थी तत्वों का समूह बनकर नही रह गयी???

इसका पुनरुद्धार शुद्धिकरण हो या इसे समाप्त किया जाए??

2 comments:

  1. इस मामले में करणी सेना या अन्य राजपूत संगठनों का राजपरिवार के पक्ष में आना उनके अनैतिक विवाह को मंजूरी देना कदापि नहीं था, यह मात्र भाजपा को जो आजकल राजस्थान में राजपूत विरोधी बन गई है को ताकत दिखाकर झुकाने का अवसर हाथ से ना जाने देना था|
    चूँकि मैं भी इस समर्थन के पक्ष में नहीं हूँ, कई संगठनों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की तो उनका यही तर्क था कि उनका मकसद दीयाकुमारी को अपनाना नहीं, सिर्फ वसुंधरा को झुकाना था, जिसमें वो कामयाब भी हुये. पहले आरक्षण पर वार्ता, फिर चुतरसिंह हत्याकांड में सीबीआई जांच और अब इस प्रकरण में राजपूत समाज ने सरकार को झुकाकर दबाव की राजनीति प्रदर्शित की है|

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    1. हुकुम,सादर प्रणाम
      पर वसुंधरा सरकार को झुकाने में भी कामयाबी कहाँ मिली?
      राजमाता(?) को वसुंधरा के दर पर जाना पड़ा, जिससे समर्थन कर वसुंधरा के खिलाफ लम्बे संघर्ष की योजना बना रहे संगठन ठगे से रह गए हैं

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