बिहार में 7% जनसंख्या वाला राजपूत समाज स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शीर्ष सत्ता से सैदेव वंचित रहा----
दीपनारायण सिंह --17 दिन
हरिहर सिंह--4 महीना
चन्द्रशेखर सिंह --7 महीना
सत्येंद्र नारायण सिंह--9 महीना
कुल 04 राजपूत मुख्यमंत्री टुकड़ों में महज 20 महीना राज कर पाए ,
70 वर्षों में कुल 2 वर्ष से भी कम राजपूत सीएम रहे,
शीर्ष सत्ता के आभाव में राजपूत समाज निरन्तर पिछड़ता चला गया और राजपूतों से द्वेषभाव रखने वाले अहीर, भूमिहार,कुर्मी आदि वर्गों के सत्ताधारियों ने भी राजपूत समाज को हर स्तर पर सताने में कोई कसर नही छोड़ी।
बिहार में कुल 3% जनसंख्या वाले भूमिहार समाज ने प्रारम्भ में ही लगातार 17 वर्ष बिहार पर राज किया,
बिहार में कांग्रेस द्वारा प्रथम मुख्यमंत्री पद के लिए बाबू अनुग्रह नारायण सिंह (राजपूत) की बजाय भूमिहार श्रीकृष्ण सिंह का चयन किया और श्रीकृष्ण सिंह लगातार 16 वर्ष बिहार के सीएम रहे, इन 16 वर्षों में भी सरकारी सहयोग से भूमिहार समाज ने निर्णायक बढ़त ली और अधिकांश सरकारी पदों पर कब्जा जमा लिया।।
बिहार में मात्र 3% जनसंख्या वाले कुर्मी समाज से नितीश कुमार पिछले 12 वर्षों से लगातार बिहार पर राज कर रहे हैं, इन्होंने इस कार्यकाल में अपने समाज को जमकर लाभ पहुंचाया और इनके कार्यकाल में राजपूतों को जमकर उपेक्षित किया गया, इन्होंने भूमिहारो को साथ रखकर राजपूतों को दरकिनार करने का पूरा प्रयास किया।
बिहार में 7% जनसंख्या वाले ब्राह्मण समाज ने भूमिहारो के साथ क्षत्रिय विरोधी गठबंधन बनाकर बिहार में 13 वर्ष तक शासन किया,
बिहार में 13% जनसंख्या वाले अहीर/ग्वाला समाज ने लालू प्रसाद के नेतृत्व में बिहार में लगातार 16 वर्ष राज किया और जमकर अपने समाज का भला किया, इनके राज में बिहार में सब जगह अहीरों का बोलबाला रहा,
कुछ राजपूतो को इन्होंने अपने साथ जोड़ा पर लालू प्रसाद स्वाभाविक रूप से राजपूतो के घोर शत्रु थे,इनका कार्यकाल राजपूतों और भूमिहारो का पतनकाल रहा।
इस प्रकार बिहार में अहीर और भूमिहार लम्बे समय तक सत्ताधारी रहे जिससे इनका वर्चस्व बढ़ा और इनका आर्थिक विकास बढ़ा,वहीँ पर्याप्त जनसंख्या होते हुए भी राजपूत सदैव उपेक्षित रहे।
कभी भूमिहार-ब्राह्मण तो कभी अहीर-कुर्मियों के शासन में राजपूत समाज को उभरने का मौका ही नही मिला।
गत बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से संकेत दिया गया कि इस बार राजेन्द्र सिंह को बीजेपी की ओर से सीएम उम्मीदवार बनाया जाएगा जिससे लगा कि बिहार में फिर से स्वर्णो के दिन बहुरेंगे, और लम्बे समय से उपेक्षित राजपूत समाज को मौका मिलेगा,
मगर तभी भूमिहार नेता गिरिराज सिंह ने द्वेषवश बयान दिया कि बीजेपी का मुख्यमंत्री पिछड़े समाज से होगा,
मोदी जी भी आरक्षण व्यवस्था बचाने के लिए जान की बाजी लगा दूंगा जैसा घटिया बयान दे बैठे,
बेचारे राजेन्द्र सिंह मुख्यमंत्री तो क्या बनते विधानसभा चुनाव ही हार बैठे।
स्वर्णो की फुट से बीजेपी हार गयी ,राजपूतों को नीचा दिखाने के चक्कर में स्वर्णो ने अपना ही विनाश कर लिया।।
दीपनारायण सिंह --17 दिन
हरिहर सिंह--4 महीना
चन्द्रशेखर सिंह --7 महीना
सत्येंद्र नारायण सिंह--9 महीना
कुल 04 राजपूत मुख्यमंत्री टुकड़ों में महज 20 महीना राज कर पाए ,
70 वर्षों में कुल 2 वर्ष से भी कम राजपूत सीएम रहे,
शीर्ष सत्ता के आभाव में राजपूत समाज निरन्तर पिछड़ता चला गया और राजपूतों से द्वेषभाव रखने वाले अहीर, भूमिहार,कुर्मी आदि वर्गों के सत्ताधारियों ने भी राजपूत समाज को हर स्तर पर सताने में कोई कसर नही छोड़ी।
बिहार में कुल 3% जनसंख्या वाले भूमिहार समाज ने प्रारम्भ में ही लगातार 17 वर्ष बिहार पर राज किया,
बिहार में कांग्रेस द्वारा प्रथम मुख्यमंत्री पद के लिए बाबू अनुग्रह नारायण सिंह (राजपूत) की बजाय भूमिहार श्रीकृष्ण सिंह का चयन किया और श्रीकृष्ण सिंह लगातार 16 वर्ष बिहार के सीएम रहे, इन 16 वर्षों में भी सरकारी सहयोग से भूमिहार समाज ने निर्णायक बढ़त ली और अधिकांश सरकारी पदों पर कब्जा जमा लिया।।
बिहार में मात्र 3% जनसंख्या वाले कुर्मी समाज से नितीश कुमार पिछले 12 वर्षों से लगातार बिहार पर राज कर रहे हैं, इन्होंने इस कार्यकाल में अपने समाज को जमकर लाभ पहुंचाया और इनके कार्यकाल में राजपूतों को जमकर उपेक्षित किया गया, इन्होंने भूमिहारो को साथ रखकर राजपूतों को दरकिनार करने का पूरा प्रयास किया।
बिहार में 7% जनसंख्या वाले ब्राह्मण समाज ने भूमिहारो के साथ क्षत्रिय विरोधी गठबंधन बनाकर बिहार में 13 वर्ष तक शासन किया,
बिहार में 13% जनसंख्या वाले अहीर/ग्वाला समाज ने लालू प्रसाद के नेतृत्व में बिहार में लगातार 16 वर्ष राज किया और जमकर अपने समाज का भला किया, इनके राज में बिहार में सब जगह अहीरों का बोलबाला रहा,
कुछ राजपूतो को इन्होंने अपने साथ जोड़ा पर लालू प्रसाद स्वाभाविक रूप से राजपूतो के घोर शत्रु थे,इनका कार्यकाल राजपूतों और भूमिहारो का पतनकाल रहा।
इस प्रकार बिहार में अहीर और भूमिहार लम्बे समय तक सत्ताधारी रहे जिससे इनका वर्चस्व बढ़ा और इनका आर्थिक विकास बढ़ा,वहीँ पर्याप्त जनसंख्या होते हुए भी राजपूत सदैव उपेक्षित रहे।
कभी भूमिहार-ब्राह्मण तो कभी अहीर-कुर्मियों के शासन में राजपूत समाज को उभरने का मौका ही नही मिला।
गत बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से संकेत दिया गया कि इस बार राजेन्द्र सिंह को बीजेपी की ओर से सीएम उम्मीदवार बनाया जाएगा जिससे लगा कि बिहार में फिर से स्वर्णो के दिन बहुरेंगे, और लम्बे समय से उपेक्षित राजपूत समाज को मौका मिलेगा,
मगर तभी भूमिहार नेता गिरिराज सिंह ने द्वेषवश बयान दिया कि बीजेपी का मुख्यमंत्री पिछड़े समाज से होगा,
मोदी जी भी आरक्षण व्यवस्था बचाने के लिए जान की बाजी लगा दूंगा जैसा घटिया बयान दे बैठे,
बेचारे राजेन्द्र सिंह मुख्यमंत्री तो क्या बनते विधानसभा चुनाव ही हार बैठे।
स्वर्णो की फुट से बीजेपी हार गयी ,राजपूतों को नीचा दिखाने के चक्कर में स्वर्णो ने अपना ही विनाश कर लिया।।
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