अगर एक दबंग जाति ज़मीन के बड़े हिस्से पर दबदबा बनाने में कामयाब हो जाती है तो फिर वो शिक्षा पर नियंत्रण करने की फ़िराक़ में लग जाती है.
ज़मीन, शिक्षा और चुनावी प्रणाली, सत्ता तक पंहुचने के तीन रास्ते हैं और दबंग जातियां इन तीनों पर अपना पूरा अधिकार स्थापित करना चाहती हैं.
पाटीदारों का इतिहास इसका उदाहरण है. समाजविज्ञानियों का मानना है कि पाटीदार या पटेल एक बड़ी प्रभावशाली जाति के रूप में उभरे.
उन्होंने ज़मीन पर नियंत्रण को राजनीति पर दबदबा क़ायम करने के लिए इस्तेमाल किया.
ताक़तवर और अधिक ताक़तवर बनना चाहते हैं. ऐतिहासिक रूप से पाटीदार अंग्रेजों की ईजाद हैं, जो अंग्रेजों के द्वारा शुरू किए गए ज़मीन की पट्टीदारी व्यवस्था में फले फूले.
वर्ण व्यवस्था में उनका ताल्लुक नीची जाति से रहा है लेकिन उन्होंने ख़ुद का संस्कृतीकरण किया.
पटेल या पाटीदार समुदाय के लोगों ने भूमि और खेतीबाड़ी से बाहर निकल कर व्यापार जगत में क़दम रखा. विदेशों में आज वे मोटल व्यवसाय का पर्यायवाची बन गए हैं.
अब सवाल यह उठता है कि जो जाति इतनी ताक़तवर और प्रभावशाली है, उसके लोगों में इतना गुस्सा क्यों है कि लाखों ने अहमदाबाद शहर को पूरी तरह ठप कर दिया.
ज़मीन के बल पर हमेशा बेहतर शिक्षा हासिल नहीं की जा सकती और न ही इसके बल पर रोज़गार हासिल किया जा सकता है.
यह आरक्षण विरोधी आंदोलन नहीं है.
पटेल यह चाहते हैं कि जाति और जाति-आधारित आरक्षण का लाभ उन्हें मिले. वे आरक्षण व्यवस्था को तभी ध्वस्त करना चाहते हैं जब वो उनके ख़िलाफ़ काम कर रही हो.
पाटीदार समुदाय के लोग जातिवादी हैं. पर भूमंडलीकरण की वजह से वे शिक्षा का महत्व समझते हैं.उन्होंने पहले जिस तरह ज़मीन पर नियंत्रण का फ़ायदा उठाया, अब उसी तरह शिक्षा का इस्तेमाल अपने हित में करना चाहते हैं.
पटेलों के विरोध का मौजूदा अर्थ यही है.
आरक्षण के खेल का नियम बदल कर अपनी सत्ता को और मजबूत करने का यह तरीका है.
सम्पन्न होकर ये नवसामन्तवादी वर्ग वही सब कर रहे हैं जिसका आरोप ये कभी सामन्तवाद के नाम पर राजपूतो पर लगाया करते थे!!
ज़मीन, शिक्षा और चुनावी प्रणाली, सत्ता तक पंहुचने के तीन रास्ते हैं और दबंग जातियां इन तीनों पर अपना पूरा अधिकार स्थापित करना चाहती हैं.
पाटीदारों का इतिहास इसका उदाहरण है. समाजविज्ञानियों का मानना है कि पाटीदार या पटेल एक बड़ी प्रभावशाली जाति के रूप में उभरे.
उन्होंने ज़मीन पर नियंत्रण को राजनीति पर दबदबा क़ायम करने के लिए इस्तेमाल किया.
ताक़तवर और अधिक ताक़तवर बनना चाहते हैं. ऐतिहासिक रूप से पाटीदार अंग्रेजों की ईजाद हैं, जो अंग्रेजों के द्वारा शुरू किए गए ज़मीन की पट्टीदारी व्यवस्था में फले फूले.
वर्ण व्यवस्था में उनका ताल्लुक नीची जाति से रहा है लेकिन उन्होंने ख़ुद का संस्कृतीकरण किया.
पटेल या पाटीदार समुदाय के लोगों ने भूमि और खेतीबाड़ी से बाहर निकल कर व्यापार जगत में क़दम रखा. विदेशों में आज वे मोटल व्यवसाय का पर्यायवाची बन गए हैं.
अब सवाल यह उठता है कि जो जाति इतनी ताक़तवर और प्रभावशाली है, उसके लोगों में इतना गुस्सा क्यों है कि लाखों ने अहमदाबाद शहर को पूरी तरह ठप कर दिया.
ज़मीन के बल पर हमेशा बेहतर शिक्षा हासिल नहीं की जा सकती और न ही इसके बल पर रोज़गार हासिल किया जा सकता है.
यह आरक्षण विरोधी आंदोलन नहीं है.
पटेल यह चाहते हैं कि जाति और जाति-आधारित आरक्षण का लाभ उन्हें मिले. वे आरक्षण व्यवस्था को तभी ध्वस्त करना चाहते हैं जब वो उनके ख़िलाफ़ काम कर रही हो.
पाटीदार समुदाय के लोग जातिवादी हैं. पर भूमंडलीकरण की वजह से वे शिक्षा का महत्व समझते हैं.उन्होंने पहले जिस तरह ज़मीन पर नियंत्रण का फ़ायदा उठाया, अब उसी तरह शिक्षा का इस्तेमाल अपने हित में करना चाहते हैं.
पटेलों के विरोध का मौजूदा अर्थ यही है.
आरक्षण के खेल का नियम बदल कर अपनी सत्ता को और मजबूत करने का यह तरीका है.
सम्पन्न होकर ये नवसामन्तवादी वर्ग वही सब कर रहे हैं जिसका आरोप ये कभी सामन्तवाद के नाम पर राजपूतो पर लगाया करते थे!!
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