किस प्रदेश में कौन सा राजनैतिक दल क्षत्रिय राजपूतों का हितैषी??------
हममे से अधिकतर अक्सर किसी न किसी दल के समर्थक होते हैं भले ही हम इसे खुलकर माने या छिपाने का प्रयास करें।
पर जरूरी नही कि हर बार हर परिस्थिति में एक ही दल का पिछलग्गू बना जाए।
एक ही राजनैतिक दल देश भर के सभी प्रदेशों में क्षत्रिय हित अथवा प्रदेश हित में हो ऐसा बिलकुल नही है,
वर्तमान समय में बीजेपी ही तमाम कमियों के बावजूद राष्ट्रहित में कही जा सकती है क्योंकि किसी भी विपक्षी दल के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व नही है।।
आरक्षण पर अपने भोंडे बयानों और हिन्दू राष्ट्रवाद के मुद्दों की उपेक्षा के बावजूद यह सत्य है कि विपक्षी दलों के राहुल गांधी, मायावती, केजरीवाल, नितीश कुमार, सीताराम येचुरी, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह से नरेंद्र मोदी प्रधानमन्त्री के रूप में लाख दर्जे बेहतर हैं।
राज्य और क्षेत्रीय स्तर पर राष्ट्र स्तर से अलग निर्णय लिए जाने में कोई हर्ज नही है।
अलग अलग राज्यों में राजनैतिक परिस्थितियां भिन्न होती हैं इसलिए आकलन और चयन क्षेत्रीय स्तर पर करना चाहिए।
चयन का मापदण्ड चयनकर्ता के विवेक पर निर्भर करता है
मेरे अनुसार विभिन्न प्रदेशों हेतु सर्वाधिक उपर्युक्त दल निम्न प्रकार हैं।।
1--जम्मू कश्मीर-----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--यहाँ राष्ट्र विरोधी ही क्षत्रिय विरोधी हैं।
जम्मू कश्मीर में बीजेपी सरकार ही राष्ट्र/राज्य और क्षत्रिय हित में है।
2--पंजाब,हरियाणा----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--जाटवादी मानसिकता
कांग्रेज़ और चौटाला की इनेलोद के मुकाबले बीजेपी/अकाली दल ही हरियाणा पंजाब में बेहतर है,पंजाब में अलगाववादी केजरीवाल की पार्टी के समर्थन में हैं उसका जीतना राष्ट्रहित में नही होगा।
3--दिल्ली--
क्षत्रिय हित में---AAP
प्रदेश हित में---कांग्रेस
क्षत्रियों विरोधी--कोई नही
दिल्ली में पहली बार आम आदमी पार्टी ने ही क्षत्रियो को ठीक ठाक प्रतिनिधित्व दिया है, पर अपनी गिरी हुई हरकतों और हाल के केजरी के राष्ट्रद्रोही बयान से इनकी विश्वसनीयता और नीयत संदेहास्पद है।
4--हिमाचल प्रदेश----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी,कांग्रेस दोनों
प्रदेश हित में---बीजेपी,कांग्रेस दोनों
क्षत्रियों विरोधी--ब्राह्मणवाद
हिमाचल प्रदेश में दोनों ही मुख्य दलों में राजपूतो का वर्चस्व है,इन्हें बारी बारी से आजमाया जा सकता है, चर्चा है कि बीजेपी हिमाचल प्रदेश में जेपी नड्डा को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट कर रही है,अगर कांग्रेस सरकार ने सही विकास किया हो तो इस परिस्थिति में उसे दोबारा आजमाने में कोई हर्ज नही है।।
5--उत्तराखण्ड----
क्षत्रिय हित में---कांग्रेस
प्रदेश हित में---कांग्रेस
क्षत्रियों विरोधी--ब्राह्मणवाद
उत्तराखण्ड में अभी तक बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों ने राजपूतो की उपेक्षा की है किन्तु अब कांग्रेस ने हरीश रावत को सीएम बनाया है जो राज्य का भरपूर विकास कर रहे हैं,अत: उत्तराखण्ड में पुन: हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनने में कोई हर्ज नही है।
6--उत्तर प्रदेश-----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--बसपा, सपा, दलितवाद, पूरब में ब्राह्मणवाद, मध्य ओर पश्चिम उत्तर प्रदेश में अहीरवाद, जाट-गूजरवाद, मुस्लिमवाद
उत्तर प्रदेश में पिछले डेढ़ दशक से सपा बसपा के शासन की वजह से उनके कोर वोटबैंक अहीर, मुस्लिम और दलितों की ताकत बहुत बढ़ गयी है,
क्षत्रिय राजपूत,स्वर्णो और बाकि हिंदुओं की हालत इनकी प्रजा जैसी हो गयी हैं।
सपा बसपा की सरकारो में सिर्फ अहीर मुस्लिम और दलितों को ही ताकत,नोकरिया,सरकारी ठेके,सम्मान मिलता है।
ये दल राजपूतों को सांसद विधायक के टिकट और मंत्री पद तो देते हैं पर कभी सत्ता में भागीदारी न देकर राजपूतो को तुच्छ सूबेदार बनाकर रखना चाहते हैं,
और इन राजपूत सूबेदारों को भी जब चाहे जलील करके दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर बाहर कर देते हैं।
राजा भैया, अमर सिंह, राजा महेंद्र अरिदमन सिंह भदावर,आनन्द सिंह, राजकिशोर सिंह, धनञ्जय सिंह, बादशाह सिंह इसके प्रमुख उदाहरण है।।
उत्तर प्रदेश में स्वर्णो को अपना अस्तित्व बचाना है तो 2017 विधानसभा चुनाव अंतिम मौका है,इन सपा बसपा जैसे जातिवादी और क्षत्रिय हिन्दू विरोधी दलों से मुक्ति पाने का
इस बार भी चूक गए तो चिरस्थाई गुलामी का जीवन जीने को विवश होना पड़ेगा,
बीजेपी में लाख बुराई हो, वो क्षत्रिय हित, स्वर्ण हित के मुद्दों पर खुलकर नही बोलते पर सपा बसपा कांग्रेस की बजाय यूपी में बीजेपी ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।
7--बिहार,झारखण्ड-----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--आरजेडी, जेडीयू ,नवसामन्तवाद, नक्सलवाद ,भूमिहारो का जातिवाद
बिहार में भी पिछले 25 साल से आरजेडी जेडीयू के शासनकाल में अहीरों और कुर्मियो का शासन स्थापित हो गया है, क्षत्रिय और बाकि स्वर्ण हाशिए पर हैं।
गत विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपनी लचर रणनीति से चूक गयी पर सही रणनीति बनाए तो अगली बार जीत सम्भव है।
बिहार में भी यूपी की तरह ही बीजेपी सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।
8--मध्य प्रदेश---
क्षत्रिय हित में---कांग्रेस
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी---ब्राह्मणवाद
मध्य प्रदेश में बीजेपी सरकार से पहले क्षत्रियों की दमदार उपस्थिति थी जो पिछले डेढ़ दशक के बीजेपी शासन में कमजोर हुई है।हालाँकि कांग्रेस सरकार में जो राजपूत मुख्यमंत्री बने वो क्षेत्रीय आधार पर ही जातिवाद करते थे,बाकि क्षेत्रों के राजपूतो की वो उपेक्षा करते थे,
जैसे दिग्विजय सिंह चम्बल बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड के राजपूतो की उपेक्षा करते थे
वहीँ अर्जुन सिंह चम्बल और बुन्देलखण्ड और मालवा के राजपूतो की उपेक्षा करते थे।।
व्यापम घोटाले के कारण ओबीसी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गद्दी जाने पर नरेंद्र सिंह तोमर और नन्दकुमार सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हों सकते हैं।।
कांग्रेस से भी कोई राजपूत मुख्यमंत्री उम्मीदवार आ सकता है।।
यहाँ विकास के मामले में बीजेपी कांग्रेस पर भारी है पर कांग्रेस को आजमाने में भी कोई हर्ज नही है।
9--छत्तीसगढ़----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--आदिवासी वाद
10--गुजरात---
क्षत्रिय हित में---कांग्रेस
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--मोदी जी ,क्योंकि उन्होंने गुजरात के एक भी राजपूत को न लोकसभा न राज्यसभा में भेजा।।
गुजरात में लम्बे समय बाद पटेल दलितों और मुसलमानो की एकजुटता से बीजेपी सरकार के जाने के आसार साफ़ दिख रहे हैं,राजपूतो की बीजेपी और मोदी ने पूर्ण उपेक्षा की है अत: यहाँ राजपूतो के लिए बीजेपी जीते या हारे कोई फर्क नही पड़ता।।
11--राजस्थान---
क्षत्रिय हित में---अब कोई नही (पहले बीजेपी थी)
प्रदेश हित में---कांग्रेस
क्षत्रियों विरोधी---जाटवाद (अब दोनों प्रमुख दलों में बुरी तरह हावी)
राजस्थान में राजपूतो ने ही बीजेपी को पाल पोसकर बड़ा किया और अपने खून से इसकी जड़ों को सींचा है लेकिन आज अहंकारी वसुंधरा कदम कदम पर राजपूतो की उपेक्षा और उत्पीड़न पर उतर आई है और जाटों का खुलकर पक्ष ले रही है,
आरक्षण पर कभी जाटों कभी गूजरों से वायदा करके इसने राज्य में कई बार आरक्षण की आग लगवाई,और भाईचारा खत्म किया।।कांग्रेस सरकार राजस्थान में बीजेपी से बेहतर रही है।
जनमानस भी इस बार वसुंधरा के खिलाफ है,
लेकिन दिक्कत यह है कि राजस्थान कांग्रेस पार्टी में जाटों का जबरदस्त वर्चस्व है, हमेशा जाटों को कांग्रेस में राजपूतो से 2 से 3 गुना प्रतिनिधित्व मिलता है,
कांग्रेस में राजपूतों को ठीकठाक प्रतिनिधित्व मिले तो अगली बार एकतरफा कांग्रेस को समर्थन देकर वसुंधरा का अहंकार चूर करके बीजेपी के समक्ष राजपूतो की ताकत का प्रदर्शन किया जा सकता है,जिसका दूरगामी लाभ राजपूत समाज को अवश्य होगा।किन्तु ऐसा न हो कि वसुंधरा की हार और कांग्रेस की जीत का श्रेय राजपूतो की बजाय जाट गूजर मीणाओं को मिले और राजपूत फिर उपेक्षा का शिकार हों।
12--महाराष्ट्र/कर्नाटक/उड़ीसा व् दक्षिण पूर्वी भारत---
महाराष्ट्र में खानदेश क्षेत्र और मुम्बई व् कई इलाको में राजपूत आबादी है,5 विधायक राजपूत हैं हाल ही में जयकुमार रावल को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।।
कर्नाटक में कांग्रेस से राजपूत मुख्यमंत्री धर्मसिंह रह चुके हैं ,बीजेपी के आनन्द सिंह भी कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं।।
उड़ीसा में कई क्षत्रिय राजपरिवार राजनीती में हैं सुदूर दक्षिण भारत में भी राजपूत हैं।
इन सभी जगह प्रादेशिक और क्षेत्रीय स्तर पर समर्थन का निर्णय लिया जा सकता है।
अक्सर राजपूत समाज में चर्चा होती है कि कोई भी दल राजपूत हितैषी नही है, ये बिलकुल सच है,
हितैषी बनाने के लिए पहले हमे अपनी ताकत दिखानी पड़ेगी और ताकत आएगी एकजुटता से।
एकजुट होकर किसी भी दल को हरा या जिताकर नही दिखाएंगे तब तक कोई पूछ नही होगी।
ऐसे नही कि सपा अहिरो को सरकारी नोकरिया दें, राजपूत युवा बेरोजगार घुमे,फूलन देवी को टिकट दे और साथ में कुछ राजपूत क्षत्रपो को भी टिकट दे तो हम भूलकर सपा के राजपूत उम्मीदवार को जीता दें,
या बसपा तिलक तराजू तलवार का नारा दे, राजा भैया स्वाति सिंह का उत्पीड़न करे,और एक टिकट ठाकुर जयवीर सिंह को दे दें तो जयवीर सिंह को जिता दो!!!!
जो क्षत्रिय विरोधी दल हैं उन्हें उनके राजपूत क्षत्रपों के बावजूद धूल में नही मिलाएंगे तो ये हमारी कमजोरी समझकर हमारा विरोध और उत्पीड़न जारी रखेंगे।।
अभी हमारे सामने राष्ट्रीय स्तर पर दो विकल्प है।
1--बीजेपी जो न खुलकर राजपूतो के साथ है न स्वर्णो के,
पर राष्ट्रहित में है और मुस्लिम तुष्टिकरण नही करती,आतंकवादियो पर कठोर है, राजपूतों को सबसे ज्यादा टिकट और पद भी बीजेपी ही देती है।।
भ्र्ष्टाचार परिवारवाद में पीछे है।
2---कांग्रेस सपा बसपा आरजेडी जेडीयू आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियां जो राजपूतो ,स्वर्णो की कट्टर दुश्मन हैं, वोटबैंक के लिए आतंकवादियो के तुष्टिकरण से भी बाज नही आते,
दलित एक्ट, आरक्षण, मुस्लिम पर्सनल ला सब इन्ही की देन हैं और राष्ट्रिय सुरक्षा के मुद्दों पर भी राजनीति से बाज नही आते।।
भृष्टाचार और घोटालों में इन्होंने सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं,
राजपूतो को इनमे से एक चुनना है।।
राजपूत समाज जब तक एकजुट होकर किसी भी दल विशेष को किसी भी राज्य में हराने या जिताने की क्षमता विकसित नही करेगा,
तब तक हमे वो सम्मान नही मिलेगा जो राजस्थान हरियाणा में जाट को, गुजरात में पटेल को, महाराष्ट्र में मराठा को, यूपी में अहीर मुस्लिम दलित और ब्राह्मण को,और बिहार में अहीर कुर्मी को मिलता है कर्नाटक में वोक्कालिंग और लिंगायत समाज को मिलता है।।
हमे अपना सबसे बड़ा शत्रु पहचानकर उसे नेस्तनाबूद कर देना चाहिए, फिर जो हमारा होकर भी हमारे हितों की अनदेखी करे उसको सबक सिखाना चाहिए,
कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर अभी बीजेपी और मोदी जी का कोई विकल्प नही है पर प्रदेश और क्षेत्रीय स्तर पर स्थानीय मुद्दों और गुणदोष के आधार पर निर्णय लिए जाने में हर्ज नही है।
हर राज्य में कौन सा राजनैतिक दल क्षत्रियो का हितैषी है इस पर मैंने अपने विचार इस लेख में दिए हैं,कृपया ब्लॉग लिंक खोलकर पढ़ें और अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर अंकित करें।।