Thursday, October 27, 2016

पूर्व मंत्री स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह राणा जी, एक दमदार व्यक्तित्व


स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह राणा जी (पूर्व मंत्री) की प्रथम पुण्यतिथि पर शत शत नमन---------

उनकी पार्टी की नीतियों का घोर आलोचक होने के बावजूद यह स्वीकार करना उचित होगा कि स्वर्गीय राणा जी जैसा दमदार व्यक्तित्व राजपूतों में देवबन्द, गंगोह विधानसभा में कोई दूसरा है ही नही।

गत वर्ष इनके असमय निधन से राजपूतों की राजनीति को गहरा आघात पहुंचा है जिसकी भरपाई सम्भव नही है,

वेस्ट यूपी में राजपूतों के सबसे समृद्ध गांव भायला में जन्मे इलाहबाद यूनिवर्सिटी से शिक्षित स्वर्गीय राणा जी बसपा टिकट पर देवबन्द से पहली बार सन् 2001 में विधायक बने,पर बीजेपी बसपा की मिली जुली सरकार में मायावती के जुल्मो और अटल आडवाणी द्वारा धृतराष्ट्र की भूमिका से यूपी में राजपूत समाज कराह उठा और राजा भैया समेत सभी राजपूत नेताओं ने सपा को समर्थन का निर्णय लिया।
और इसी कड़ी में 2003 में बसपा के 40 विधायको को तोड़कर मुलायम सिंह की सरकार बनवाकर इन्ही स्वर्गीय राजेन्द्र राणा ने मायावती के जुल्मो से उत्तर प्रदेश को मुक्ति दिलाई थी, हालाँकि 40 विधायको का नेता होने के बावजूद सपा सरकार में इन्हें मात्र राज्यमंत्री बनाया गया जो इनके योगदान और प्रतिभा को देखते हुए कम था।

यही नही सहारनपुर से 2 राजपूत मंत्रियों जगदीश राणा और स्वर्गीय राजेन्द्र राणा के बावजूद जिले में 4 साल इमरान मसूद की जमकर चली,क्योंकि मुस्लिम मतो की वजह से उसे सपा हाईकमान की शह थी।

2014 में इन्होंने अपने दम पर देवबन्द सीट से विधायक का चुनाव जीता जबकि सहारनपुर जिले में बाकि सभी सपा उम्मीदवार हार गए थे।
2014 में आपको राज्यमंत्री स्वतन्त्र प्रभार बनाया गया,और ये सहारनपुर जिले में एकमात्र सपा विधायक थे,
बाकि सभी हवाई नेता थे,ऐसा लग रहा था कि अगले 5 साल सहारनपुर जिले में स्वर्गीय मंत्री जी की एकछत्र सत्ता चलेगी,

मगर यहाँ उल्टा हुआ,
सपा हाईकमान के विभिन्न गुटों ने जिले में अलग अलग रीढ़विहीन नेताओं को शह देनी शुरू कर दी,
जो एक सीट नही जिता सकते ऐसे हवाई नेताओं ने अपने अपने आकाओ के दम पर सहारनपुर में सपा को हाइजैक कर लिया।
सरफराज खान,अभय चौधरी, उमर अली,राजसिंह माजरा,साहब सिंह सैनी, चन्द्रशेखर यादव और दर्जनों छुटभैये जनाधारविहीन नेता सपा सरकार में सहारनपुर जिले में प्रशासन पर छाए रहे।

विवश होकर स्वर्गीय राणा जी ने खुद को देवबन्द विधानसभा तक सिमित कर लिया,रही सही कसर सहारनपुर जिले में नियुक्त हुए ताकतवर नोकरशाहो ने पूरी कर दी,
अक्सर अहीर जाति से सम्बंधित या अन्य प्रशासनिक अधिकारी जिंनकी शासन व् सपा हाईकमान में गहरी पैठ थी, उन्होंने भी स्वर्गीय राणा जी की अनदेखी की और इन्हें पर्याप्त सम्मान नही दिया गया,जिसके ये हकदार थे,

सपा के छुटभैये नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के कारण राणा जी की संस्तुतिओ से राजपूतों के काम कम होने से राजपूत समाज में भी एक वर्ग में राणा जी के प्रति नाराजगी उतपन्न हुई और इसका दुष्परिणाम उपचुनाव में भी देखने को मिला।

जिस इमरान मसूद ने सहारनपुर में 42% मुस्लिम वोटबैंक के दम पर 2003 से 2007 के बिच मुलायम सरकार में सहारनपुर के एक और राजपूत मंत्री जगदीश राणा जी को जमकर अपमानित किया था,और उसके हल्ला बोल के सामने तत्कालीन वरिष्ठ मंत्री जगदीश राणा जी भी बैकफुट पर रहे,
वो इमरान मसूद भी सीधे स्वर्गीय राजेन्द्र राणा जी से टक्कर लेने से बचता था, इमरान मसूद को सपा से 2014 लोकसभा चुनाव में टिकट मिला था और उनकी जीत पक्की थी,पर उसने स्वर्गीय राणा जी से विवाद कर लिया और राणा जी ने उसका टिकट कटवा कर तगड़ा झटका दे दिया था।

इसी बीच राणा जी जानलेवा बीमारी से ग्रस्त हो गए और पर्याप्त कोशिस और उपचार के बावजूद आपका दिनांक 27-10-2016 को स्वर्गवास हो गया।।

आपकी विरासत को उनके पुत्र कार्तिकेय राणा सम्भाल रहे हैं,राणा जी की मृत्यु के बाद इनकी पुत्री प्रियम्वदा का विवाह गोंडा निवासी आईपीएस अधिकारी से गत वर्ष ही सम्पन्न हुआ है।
इनकी धर्मपत्नी श्रीमती मीना राणा जी उपचुनाव में बेहद मामूली अंतर से हार गयी थी,जिसका सबको अफ़सोस है,
इस बार फिर से इन्हें सपा से टिकट मिला है।

पिछले 5 वर्ष में सहारनपुर से सत्ताधारी दल के एकमात्र विधायक और ताकतवर मंत्री होते हुए भी स्वर्गीय राणा जी और राजपूत समाज की जिले में शासन प्रशासन में वो धमक सुनाई नही दी, जिसके वो हकदार थे,

लेकिन यह मानने में कोई हर्ज नही कि इनके जैसा दमदार राजपूत व्यक्तित्व देवबन्द गंगोह विधानसभाओ में कोई दूसरा नही है।।

स्वर्गीय राणा जी को शत शत नमन।

Monday, October 17, 2016

क्षत्रिय राजपूतों का स्वर्ण युग (पाल-प्रतिहार-राष्ट्रकूट युग)The golden period of rajput era

सनातन धर्म के रक्षक महान राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन-----

सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जयंती 18 अक्टूबर, को राजस्थान ,गुजरात,उज्जैन, बघेलखण्ड, दिल्ली, मुम्बई,करनाल ,उत्तर प्रदेश आदि में धूमधाम से मनाई जा रही है।
सभी सनातन धर्मावलम्बी बन्धुओं को उत्तर भारत के एकछत्र स्वामी रहे सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं।।

आठवी सदी से दसवी सदी के युग में जब कन्नौज को राजधानी बनाकर सम्पूर्ण उत्तर भारत पर लक्ष्मण के वंशज प्रतिहार राजपूतों का राज्य था,
ठीक उसी समय सम्पूर्ण दक्षिण भारत राठौड़ (राष्ट्रकूट)राजपूतों के अधीन था,जिनकी सीमाए कभी कभी हिमालय पर्वत से भी आ मिलती थी।
और सम्पूर्ण पूर्वी भारत पर उस समय सूर्यवंशी राजपूत वंश (पालवंश) का शासन था।।

ये तीनो क्षत्रिय वंश आपस में एक दूसरे से टकराते भी थे पर जब भी अरब हमलावर सिंध से आगे बढ़ने का प्रयास करते थे तो तीनो एकजुट होकर बाकि सामन्त क्षत्रिय राजवंशो के सहयोग से अरब हमलावरों को मार भगाते थे।।

जब आठवी सदी से दसवी सदी लगभग 250 वर्ष तक प्रतिहार/राष्ट्रकूट/और पाल सूर्यवंशी राजपूतों के बड़े राजवंश भारतवर्ष के तीन अलग अलग हिस्सों पर राज करते थे,
तब चन्देल,तंवर,चौहान, कलचुरी, गुहिलौत, सोलंकी, मौर्य, परमार, भाटी, जादौन,यौधेय,टांक, कच्छवाह,बडगूजर, चावड़ा, पुण्डीर आदि क्षत्रिय राजपूत वंश अलग अलग क्षेत्रों में इनके सामन्तो के रूप में राज्य करते थे।

सम्पूर्ण राजपूत युग में प्रतिहार/राष्ट्रकूट/पाल सूर्यवंश का शासनकाल स्वर्ण युग है,जिसमे भारतवर्ष में राजपूतों ने बड़े साम्राज्यों की स्थापना कर विदेशी हमलावरों का कई सदी तक सफलतापूर्वक सामना किया।
क्योंकि जिन अरब मुस्लिम हमलावरों ने मौहम्मद साहब की मृत्यु के सिर्फ दो दशक के भीतर ही सारा मध्य पूर्व एशिया,ईरान, इराक, सीरिया, मिस्र, उजेबिकस्तान, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान तक जीत लिया था और जीतते हुए वो स्पेन तक चले गए थे,
उन शक्तिशाली अरब मुस्लिम हमलावरों को भारत के इन राजपूत वंशो ने मिलकर ऐसी करारी मात दी कि वो लगातार अगले 7 वी सदी से 12 वी सदी तक पूरे 500 वर्षों तक भारत में नही घुस पाए थे,

ये बहुत बड़ी सफलता है जिसका जिक्र मुस्लिम इतिहास में आज भी शिकवा के रूप में होता है।।

प्रतिहार/राष्ट्रकूट/पाल साम्राज्यों के पतन के बाद भारत में दुर्भाग्यवश बड़े साम्राज्यों की स्थापना नही हो सकी,और चन्देल, कलचुरी, चौहान, परमार, गुहिलौत, सोलंकी आदि क्षत्रिय राजपूत वंशो के राज्य अलग अलग प्रदेशो में स्वतन्त्र रूप से स्थापित हो गए जो मिलकर इकाई नही बना सके।।
कुछ समय के लिए सम्राट भोज परमार, बीसलदेव चौहान, कर्ण कलचुरी,यशोवर्मन चन्देल आदि महान शासक हुए जिन्होंने बड़े राज्यों की स्थापना की ,पर वो स्थायी नही रह सके।

बड़े साम्राज्य की स्थापना उत्तर भारत को तुर्क हमलावरों से बचाने को आवश्यक थी,इसे भांपकर अजमेर के युवा वीर पृथ्वीराज चौहान ने प्रयास शुरू किया और उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर चौहान साम्राज्य स्थापित हो गया,किन्तु दुर्भाग्यवश पृथ्वीराज चौहान जैसा वीर क्षत्रिय सम्राट मात्र 26 वर्ष की आयु में युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गया।
सन् 1192 ईस्वी में राजपूतों के आपसी मतभेदों से तराईन के दूसरे युद्ध में हार के बाद ही अरब/तुर्क हमलावर भारत में मुस्लिम शासन स्थापित करने में कामयाब हुए।।

गल्लका लेख के अनुसार सातवी सदी में अवन्ति उज्जैनी के लक्षमनवंशी प्रतिहार राजपूत राजा नागभट प्रथम ने गुर्जरत्रा क्षेत्र से उदण्ड गुर्जरो को हराकर भगा दिया था और गुर्जरत्रा प्रदेश पर अधिपत्य जमाया,
गुर्जरत्रा प्रदेश पर शासन करने और कालांतर में वहां से राजौरगढ़ ,कन्नौज इत्यादि स्थानों पर जाकर शासन करने से इन्हें कुछ स्थानों पर गुर्जर प्रतिहार भी कहा गया जो जातिसूचक नही स्थानसूचक संज्ञा थी।

लक्ष्मण वंशी प्रतिहार राजपूतों के वंशज आज के परिहार, मुंढाढ़, और सम्भवत (शोध आवश्यक) बडगूजर,सिकरवार आदि राजपूत हैं।।

राष्ट्रकूट राजपूतों के वंशज आज के राठौड़ राजपूत हैं,
और पालवंश के वंशज आज बिहार,अवध,कुमायूं,पूर्वांचल में मिलने वाले सूर्यवंशी राजपूत हैं जो आज भी पाल टाइटल अपने नाम के आगे लिखते हैं,सांसद और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री जगदम्बिका पाल सूर्यवंशी राजपूत ही हैं।

सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार को कोटि कोटि नमन करते हुए मैं इस अवसर पर उन युवाओं को साधुवाद दूंगा जिन्होंने क्षेत्रवाद गोत्रवाद भूलकर एक महान यौद्धा की स्मृति पुनः जागृत करने में अपना योगदान दिया है।

सनातन धर्म के रक्षक सम्राट मिहिरभोज को कोटि कोटि नमन

जय मिहिरभोज, जय क्षात्र धर्म  

Sunday, October 16, 2016

पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में हिन्दू सोढा राजपूत क्या वाकई खुश हैं???

पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में हिन्दू सोढा राजपूत क्या वाकई खुश हैं??----

#sodha rajputs of pakistan
सन् 1947 ईस्वी में भारत विभाजन के समय मौहम्मद अली जिन्ना ने राजपूताने की मारवाड़, जैसलमेर, बीकानेर जैसी रियासतों के राजपूत राजाओं को पाकिस्तान में मिलने का प्रस्ताव दिया था, और कई प्रलोभन भी दिए थे,

तत्कालीन कांग्रेस सरकार की राजपूत विरोधी नीतियों के बावजूद जिन्ना के लुभावने प्रस्ताव को सोच समझकर महाराजा हनुमन्त सिंह और बाकि राजपूत राजाओं ने ठुकरा दिया था,

आज कुछ मुर्ख और दिखावे की कथित तड़क भड़क से प्रभावित होने वाले राजपूत बन्धु (इक्का दुक्का मन्दबुद्धि) कहते हैं कि वो प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए था,इससे इन इलाको में आज भी राजपूतो की जागीरदारी और वर्चस्व बना रहता!!!!अपनी बात के सबूत में वो करणी सिंह और हमीर सिंह सोढा की कथित तड़क भड़क की तस्वीरें पोस्ट करते हैं,जो अर्धसत्य है।

लेकिन अमरकोट के सोढा राजपूत परिवार ने पाकिस्तान में मिलने का निर्णय लिया,और बाद में जो हुआ वो इतिहास है।।ऊपर से कितनी भी तड़क भड़क प्रचारित की जाती हो पर आज वहां के सोढा राजपूत अपने निर्णय पर पछता रहे हैं।

1---पाकिस्तान में जागीरदारी प्रथा समाप्त नही हुई और न ही सीलिंग एक्ट लागु है,इससे अधिकांश मुस्लिम जमीदारो के साथ साथ थोडा सा लाभ थारपारकर जिले के कुछ सोढा राजपूत परिवारो को भी हुआ है।।

2---पाकिस्तान सेना ने अमरकोट का किला सोढा राजपरिवार से छीन लिया,और इसका हिन्दू नाम अमरकोट को बदलकर मुस्लिम नाम उमरकोट रख दिया,
यही नही इसकी स्थापना का श्रेय भी राजपूतों की बजाय किसी और को दे दिया।।

3--पाकिस्तान में सिंध प्रदेश में ही थोड़े हिन्दू बचे हैं,हर साल जान और इज्जत बचाने के लिए हजारो हिन्दू पलायन करके भारत में शरण लेते हैं, सिंध में हिन्दू युवतियों के अपहरण के बाद जबरन धर्म परिवर्तन की सैंकड़ो घटनाए होती रहती हैं,

वहां राजपूत समुदाय अपने परिवार की लड़कियों और महिलाओं को किसी भी हालत में घर से बाहर निकलने नही देता,न स्कुल में जाने देता है,
न ही बीमारी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराया जाता है,और सुरक्षा की दृष्टि से यह सही भी है।

1971 के भारत पाक युद्ध के बाद हजारो सोढा राजपूत सुरक्षा के लिए भारत में शरण लेने आए।।कई हजारो एकड़ के जमीदार सोढा राजपूत भी अपनी जन्मभूमि से उजड़ने को मजबूर हो गए,और आज गुजरात,राजस्थान में रहते हैं।

4--सिंध के अमरकोट/थारपारकर/छाछरो/मीठी क्षेत्र में 1947 ईस्वी तक हिंदुओं की आबादी 70 से 80% थी और मुस्लिम इस इलाके में मात्र 25% थी,पर पाकिस्तान की इस्लामीकरण निति और हिन्दुओ के पलायन/उत्पीड़न के कारण अब सिंध के इस इलाके में भी हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं और मुस्लिम जनसंख्या यहाँ बढ़कर 55% से 75% तक हो गयी है,

यही हाल रहा तो अगले बीस साल में इन बचे खुचे हिंदुओं के भी सिंध/अमरकोट की प्राचीन भूमि से विलुप्त होने का खतरा है।

5--जिस सोढा राजपूत परिवार की तड़क भड़क आजकल सोशल मिडिया पर अतिप्रचारित की जा रही है,वो मजबूती से डटे हुए हैं पर उनके सामने भी बहुत मुश्किलें आ रही है।
स्वर्गीय राणा चन्द्रसिंह सोढा पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के जुल्फिक्कर अली भुट्टो के नजदीकी थे,और कई बार पाकिस्तान की संघीय सरकार में मंत्री और हिन्दू कोटे से राष्ट्रीय असेम्बली के सदस्य भी रहे।

पर बाद में हिन्दू विरोधी निति के कारण इस परिवार के सम्बन्ध पाकिस्तान की राष्ट्रिय पार्टियों से खराब हो गए और अब इन्होंने पाकिस्तान हिन्दू पार्टी बना ली है,
राजनीति में अब इस परिवार का वर्चस्व बहुत कम हो गया है,पहले हिन्दू कोटे से इस परिवार को राष्ट्रिय असेम्बली में जगह मिलती थी पर अब हिन्दू कोटे से भील दलितों और व्यापारी वर्ग को राष्ट्रिय असेम्बली में भेजा जाता है।।पाकिस्तान के हिंदुओं में राजपूतों की संख्या मात्र 5% है,बाकि 95% भील दलित और कुछ व्यापारी हैं

दरअसल पाकिस्तान पहले इस सोढा राजपरिवार का अपने यहाँ वर्चस्व दिखाकर भारत के राजपूतों को आकर्षित करना चाहता था,जैसे अब पाकिस्तान में मुस्लिम जाटों की ताकत का प्रचार करके हरियाणा राजस्थान में युनिस्ट मिशन के माध्यम से जाटों को लुभाया जा रहा है,
लेकिन राजपूत पाकिस्तान के झांसे में न कभी आए हैं न कभी आएंगें।
इसलिए अपना दांव फेल होता देख इस परिवार को मिलने वाली अहमियत पाकिस्तान में बन्द हो गयी है।अब पाकिस्तान में बहुत से वर्ग और सरकार इन स्वाभिमानी सोढा राजपूतो के खिलाफ दलितों को खूब भड़काते हैं और वहां भी उनके प्रभाव में हिन्दुओ का बड़ा वर्ग अब इन सोढा राजपूतों के प्रभुत्व के खिलाफ है

अपनी बची हुई जमीदारी और आत्मसम्मान की भावना से ओतप्रोत शानदार व्यक्तित्व के स्वामी हमीर सिंह सोढा जी और उनके पुत्र करणी सिंह ,मुस्लिमो के एक वर्ग की चुनोती के बावजूद दमखम से डटे हुए हैं,
इसमें कोई शक नही कि भारत में आज सैंकड़ो शाही परिवारो में एक भी व्यक्तित्व हमीरसिंह सोढा जी की टक्कर का नही है।उनके शानदार व्यक्तित्व पर राजपूतो को गर्व है और होना भी चाहिए,
लेकिन भारत में सोशल मिडिया पर उन्हें लेकर होने वाले मूर्खतापूर्ण प्रचार से उन्हें समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है,

कुछ दिनों पहले भारत में सोशल मिडिया पर झूठा प्रचार हुआ कि इन्होंने सिंध में भारत का तिरंगा झंडा लहरा दिया है और लाखो मूर्खो ने इसे कॉपी पेस्ट कर फैला दिया,
जब यह खबर पाकिस्तान में गयी और प्रतिक्रिया हुई तो करणी सिंह सोढा ने स्पष्टीकरण देना पड़ा कि वे देशभक्त पाकिस्तानी है और उन्होंने भारत में यह झूठा प्रचार बन्द करने की अपील की।।

अभी भी सोशल मिडिया और न्यूज़ पोर्टलों पर उन्हें लेकर अतिशयोक्तिपूर्ण प्रचार होता है कि देखो एक राजपूत कैसे पाकिस्तान में मुसलमानो की छाती पर बैठकर राज कर रहा है,
जबकि इस झूठे प्रचार से सिंध में बचे हुए इन सोढा राजपूतो को सिवाय समस्या और कुछ नही मिलेगा।।
पर लगता है सोशल मिडिया पर सिर्फ जय राजपूताना का नारा लिखने वाले राजपूत इन्हें पाकिस्तान में भी चैन से जीने नही देंगे।।

यह न्यूज़ लिंक पाकिस्तान के डॉन अख़बार का है जिसमे साफ़ लिखा है कि सोढा राजपूत पाकिस्तान में मिलने के निर्णय पर आज पछता रहे हैं।
कभी मौका मिले तो युद्ध में इस इलाके को जीतकर भारत में मिला लेने से ही इन सिंध/अमरकोट के हिंदुओं का अस्तित्व बच पाएगा।
1971 में मौका आया था और छाछरो तक भारतीय सेना ने जीत लिया था,पर इंदिरा सरकार ने वो जीती हुई भूमि पाकिस्तान को वापस कर दी।

कृपया यह ब्लॉग लिंक खोलकर भी जरूर पढ़ें
http://www.dawn.com/news/1157340

Monday, October 10, 2016

भारतीय सेना में राजपूतों की उपेक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हानिकारक

राजपूत रेजिमेंट में कुल कितने प्रतिशत राजपूत होंगे???

कुल 20 बटालियन हैं और एक बटालियन में करीब 850 जवान होते हैं, यानि करीब 17500 जवान,

कुछ दिन पहले लोकसभा में एक गुज्जर सांसद बोला कि राजपूत रेजिमेंट में करीब 8880 गुज्जर हैं,
यानि कुल का 50%,

ये आंकड़ा बड़ा चढ़ाकर भी हो तो भी राजपूत रेजिमेंट में राजपूतो की कुल संख्या 40% से अधिक नही है और गुज्जर करीब 30% हैं

जबकि जाट रेजिमेंट में 95% जाट और सिक्ख रेजिमेंट में 90% जट्ट सिक्ख, गोरखा रेजिमेंट में 100% गोरखा हैं।

ब्रिटिश काल में राजपूत रेजिमेंट में 50% पंजाबी मुसलमान थे,और जाट रेजिमेंट में भी आधे मुसलमान थे,

लेकिन विभाजन के बाद मुस्लिम सैनिक पाकिस्तान चले गए तो जाट रेजिमेंट को कांग्रेस सरकार के रणनीतिकारों ने प्योर जाट रेजिमेंट बना दिया और मुस्लिम बटालियनों से आए जाट भर दिए ,जबकि राजपूत रेजिमेंट में मुसलमानो की जगह गुज्जर भर दिए गए!!!!!

ये भेदभाव उस समय कांग्रेस सरकार ने क्यों किया जाट और राजपूतो के बीच???
क्यों राजपूत रेजिमेंट आज सिर्फ नाम की राजपूत रेजिमेंट रह गयी जिसमे आधे भी राजपूत न हों???

राष्ट्रहित सर्वोपरि, सभी जवान हमारे आदरणीय हैं।
लेकिन इस निति का प्रमुख कारण क्या है???

कृपया अपने विचार रखें,

भारत माता की जय।।

Sunday, October 9, 2016

पण्डावाद विरोधी कुछ क्षत्रिय विद्वान स्वयं सबसे बड़ी पण्डावादी पार्टी के नेताओं के प्रबल समर्थक क्यों?



पण्डावाद का विरोध उचित और क्षत्रिय संस्कारो का ज्ञान सर्वोत्तम है पर दोहरा आचरण क्यों-----

मैंने ये बड़ी अजीब बात महसूस की है कि कुछ क्षत्रिय धर्म के विद्वान जो ब्राह्मणवाद और पण्डावाद के कट्टर आलोचक हैं वो खुलकर या चोरी छिपे उन राजनेताओं को अपना आदर्श मानते हैं जो स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में सर्वाधिक ब्राह्मणवादी विचारधारा और वर्चस्व फ़ैलाने वाले दल कांग्रेस के सदस्य हैं!!!!

भला नेहरू गांधी परिवार से ज्यादा ब्राह्मणवाद, पण्डावाद और किसने फैलाया???
फिर दिग्विजय सिंह, अर्जुन सिंह जैसे गांधी नेहरू परिवार के चमचे राजनेताओं को पण्डावाद के विरोधी हमारे क्षत्रिय विद्वान अपना आदर्श क्यों मानते हैं????
(चोरी छिपे ही सही 😂😂😂)

ये रिश्ता क्या कहलाता है???🙈🙈🙈🙈
क्या आज के युग में पुरे देश में सभी दिशाओं में सिर्फ पण्डावाद ही क्षत्रियों का दुश्मन है या और भी नई चुनौतियां है??

हालाँकि ये 100% सत्य है कि स्वतन्त्रता के समय और उससे कुछ समय पूर्व राजपूत ही ब्राह्मण और वैश्य वर्ग के सामने चुनौती थे ,अत: अपना वर्चस्व बनाने के लिए इन्होंने जाट गूजर अहीर कुर्मी जैसे राजपूतो के सहयोगी किसान वर्गों को राजपूतो के विरुद्ध भड़काकर अपना उल्लू सीधा किया था।
ऐसा करके इन्होंने राजपूतो का वर्चस्व समाप्त किया और कांग्रेस सरकार के दम पर अपना राज स्थापित कर लिया।।

पर अब वेस्ट यूपी, हरियाणा, पंजाब ,राजस्थान ,गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली में कौन सा ब्राह्मणवाद बनियावाद हमारा रास्ता रोकने को खड़ा है???
बल्कि अब तो बिहार में भी क्षत्रिय और ब्राह्मण दोनों हाशिए पर हैं।
हमारे क्षत्रिय विद्वानों की बात 1940 से 1990 तक सत्य थी पर अब लगभग ओचित्यविहीन है।।

मेरे हिसाब से तो पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड के कुछ हिस्सों को छोड़कर अब पण्डावाद से हमारा मुकाबला है ही नही,
बल्कि नवसामन्तवाद (जाट अहीर गूजर पटेल), दलितवाद, आरक्षणवाद, मुस्लिमवाद ही हमारे सामने सबसे बड़ी चुनोती बनकर उभरे हैं।

हमे अपने वास्तविक दुश्मन की पहचान करना सीखना जरूरी है,तभी उससे मुकाबला कर पाएंगे।।

पुरबिया राजपूतों की शौर्यगाथा



पुरबिया राजपूतों की शौर्यगाथा------
Rajput of east India , one of the greatest martial races of the world----

10 अप्रैल 1796 ईस्वी को हरिद्वार के कुम्भ मेले का अंतिम दिन था,लेकिन सुबह की पहली किरण भावी विनाश का संकेत लेकर आई थी,
कुम्भ स्नान के दौरान ही नागा साधुओं का वहां स्नान के लिए आए पटियाला के सिक्ख सैनिको से विवाद हो गया।
इसके बाद पटियाला के साहिब सिंह ने 14 हजार जट्ट सिक्ख घुड़सवार सैनिको के साथ हरिद्वार में तीर्थयात्रियों का संहार और लूटपाट शुरू कर दिया।

500 के लगभग निर्दोष तीर्थयात्री साधू संत और व्यापारी मारे गए,और हजारो को तलवार के वॉर से घायल कर दिया गया,हर की पैड़ी रक्त से लाल हो गयी।।सैंकड़ो गंगा पार कर जान बचाते हुए डूब कर मर गए कुछ तेज धार में बह गए।।

इस नरसंहार में हजारो तीर्थयात्री और मारे जाते मगर सौभाग्य से वहां कैप्टन मुरे के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना की एक पुरबिया राजपूत बटालियन मौजूद थी,जिसके करीब एक हजार राजपूत सैनिक अवध पूर्वांचल और भोजपुर क्षेत्र से थे,

उन्होंने अपनी जान पर खेलते हुए साहिब सिंह पटियाला के जट्ट सिक्ख सैनिको को चुनौती दी,और उनका मुकाबला किया।।
और जल्द ही उन्हें हरिद्वार से भागने को विवश कर दिया और हजारो तीर्थयात्रियों साधुओ और व्यापारियो की जान बचाई।।

1796 ईस्वी वो समय था जब उत्तर भारत में मुगल शक्ति दम तोड़ चुकी थी,राजपुताना के राजपूत मराठो पिंडारियों की लूटपाट और आपसी मतभेदों से कमजोर हो चुके थे,कहीं मराठा, सिक्ख, कहीं जाट,कहीं रुहेले, गूजर एकजुट होकर ताकतवर हो रहे थे,
ब्रिटिश अभी उत्तर भारत में ढंग से स्थापित नही हो पाए थे,
चारो तरफ अराजकता का माहौल था।।

पुरबिया (अवध पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार) राजपूत सैनिको के दम पर अंग्रेजो ने पहले अवध और बंगाल के नवाब को हराया,फिर भरतपुर के जाटों को हराया,उसके बाद होल्कर और सिंधिया को मात दी।
उसके बाद 1816 को नेपाल के गोरखों को हराया,1842 ईस्वी में अफगानिस्तान के पठानों पर अंग्रेजो ने इन्ही पुरबिया राजपूतो के दम पर हराया,
1846 ईस्वी में अंग्रेजो ने सिक्खो को भी अंतिम मात इन्ही पुरबिया राजपूत सैनिको के दम पर दी थी।।

कुल मिलाकर पुरबिया राजपूत शानदार यौद्धा थे,इनकी सैनिक योग्यता का लाभ अंग्रेजो ने उठाया पर ये अपनी जन्मभूमि पर एकजुट होकर बड़ा साम्राज्य स्थापित नही कर पाए।
अंग्रेज उनके बड़े प्रशंसक थे,लेकिन 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम से अंग्रेजो की सोच बदल गयी।।भारत पर पूर्ण नियंत्रण करने के साथ ही अंग्रेजो ने देश में किसानो कारिगरो जमीदारो देशी रियासतो का शोषण शुरू कर दिया और धार्मिक अधिकारो को भी कुचलना शुरू कर दिया,देशी सैनिको को यूरोपियन की बजाय कम वेतन और सुविधाएं दी जाती थी।

इन नीतियों से रुष्ट होकर 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में सबसे पहले पुरबिया सैनिको ने बगावत का झंडा बुलन्द किया,और पूर्वांचल अवध बिहार क्षेत्र में ब्रिटिश सेना के पुरबिया राजपूत सैनिक वहां के विद्रोही राजपूत जमीदारो के साथ मिल गए और इन इलाको से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ दिया।।सन 1857 के गदर में सबसे बड़ी भूमिका राजपूत ताल्लुकेदारों जमीदारो और ब्रिटिश सेना के पुरबिया राजपूत सैनिको ने ही निभाई थी और अंग्रेजो की सत्ता भारतवर्ष से उखाड़ फेकने को कटिबद्ध हुए थे।

तब जाकर अंग्रेजो ने उन सिक्खों ,जाटों और नेपाल के गोरखों की मदद ली जिन्हें अंग्रेजो ने इन्ही पुरबिया राजपूतो के दम पर अपने अधीन किया था, सिक्खों गोरखों और जाटों की मदद से अंग्रेजो ने 1857 की क्रांति को कुचल दिया और इसके बाद ब्रिटिश सेना में पुरबिया राजपूतो की भर्ती बन्द कर दी।।

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजो के विरुद्ध बगावत करने के कारण अब पुरबिया राजपूतों ब्राह्मणों की बजाय ब्रिटिश सेना में सिक्खों, गोरखों, जाटों ,पंजाबी मुसलमानो और राजपूताने और पहाड़ी क्षेत्र के राजपूतो की भर्ती बड़े पैमाने पर भर्ती की जाने लगी।।
और इसे मार्शल रेस थ्योरी का नाम दिया जो विशुद्ध रूप से राजनैतिक नीयत से प्रेरित थी जिसमे उन वर्गों को ताकतवर किया जाना था जिनसे उन्हें विद्रोह की आशंका नही थी।
हालाँकि बाद के दिनों में गहमर जैसी कुछ प्रसिद्ध जगहों से ब्रिटिश सेना में राजपूतो की भर्ती दोबारा की जाने लगी और अब फिर से भारतीय सेना में पुरबिया राजपूतो की संख्या बढ़ने लगी है।

बदले की भावना से ब्रिटिश शासन ने पंजाब ,वेस्ट यूपी के विकास पर बड़ा ध्यान दिया और जान बूझकर बिहार अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश को विकास से वंचित कर दिया।।
यही नही बिहार और पूर्वांचल में भूमिहार जाति को राजपूतो की कीमत पर जमीदारियां दी गयी।।
आज पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार का पिछड़ापन ब्रिटिशकाल से जारी नीतियों की देन है।

भारतवर्ष में राजपूतो की कुल संख्या का लगभग 50% अवध पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में निवास करता है,

ऐतिहासिक काल में भी इस इलाके में मौर्य वंश(परमार राजपूत),
गुप्त (सोमवंशी राजपूत), बैस वंश (हर्षवर्धन),पाल वंश (सूर्यवंशी राजपूत), गहरवार वंश, चन्देल, कलचुरी वंश के क्षत्रिय राजपूतों ने देशभर में एकछत्र साम्राज्य स्थापित किये थे।
इन्ही पुरबिया राजपूतों ने सुहेलदेव बैस के नेतृत्व में महमूद गजनवी के भतीजे सैय्यद सलार मसूद गाजी को उसके एक लाख सैनिको के साथ मौत के घात उतारकर मुस्लिम हमलावरों को सबसे करारी मात दी थी,

पुरबिया राजपूत मालवा के मेदिनिराय और शिलादित्य तंवर की सेना में शामिल होकर खानवा के युद्ध में राणा सांगा के नेतृत्व में बाबर से भी भिड़े थे,
इन्ही पुरबिया राजपूत सैनिको की चेतावनी के कारण अहमद शाह अब्दाली ने पानीपत के युद्ध 1761 ईस्वी में मराठो की हार के बाद उनके मृत सैनिको का हिन्दू रीती से अंतिम संस्कार की अनुमति दी थी।।
मध्यकाल में पुरबिया राजपूत सैन्य सेवा के लिए मालवा दक्षिण भारत और देश के कई हिस्सों में जाकर स्थायी रूप से भी बस गए जिनके वंशज आज भी उन इलाको में मिलते हैं।उनके इन इलाको के अन्य राजपूतो से वैवाहिक सम्बन्ध न के बराबर हैं।मालवा महाराष्ट्र में इनकी बड़ी आबादी है।

राजनीति में आज भी पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के राजपूत आगे हैं पर स्वतन्त्र न होकर अधिकतर दूसरे समाज के नेताओ के सूबेदारों के रूप में हैं।।
इन्हें फिर से अपनी खोई ताकत वापस लाने की सख्त जरूरत है।।



Note---वर्तमान पिछड़ेपन के कारण आज पंजाब हरियाणा महाराष्ट्र राजस्थान पश्चिमी उत्तरप्रदेश में पुरबिया लोगो को हेय दृष्टि से देखा जाता हैं,क्योंकि वो उनके इतिहास से परिचित नही हैं।
उनके प्राचीन और मध्यकालीन गौरव की जानकारी देने के लिए ही यह लेख लिखा गया है।।

लेखक--श्री योगेन्द्र सिंह जी की वॉल से लेख साभार लिया गया है।

Saturday, October 8, 2016

किस प्रदेश में कौन सा राजनैतिक दल क्षत्रिय राजपूतों का हितैषी?

किस प्रदेश में कौन सा राजनैतिक दल क्षत्रिय राजपूतों का हितैषी??------

हममे से अधिकतर अक्सर किसी न किसी दल के समर्थक होते हैं भले ही हम इसे खुलकर माने या छिपाने का प्रयास करें।

पर जरूरी नही कि हर बार हर परिस्थिति में एक ही दल का पिछलग्गू बना जाए।
एक ही राजनैतिक दल देश भर के सभी प्रदेशों में क्षत्रिय हित अथवा प्रदेश हित में हो ऐसा बिलकुल नही है,

वर्तमान समय में बीजेपी ही तमाम कमियों के बावजूद राष्ट्रहित में कही जा सकती है क्योंकि किसी भी विपक्षी दल के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व नही है।।
आरक्षण पर अपने भोंडे बयानों और हिन्दू राष्ट्रवाद के मुद्दों की उपेक्षा के बावजूद यह सत्य है कि विपक्षी दलों के राहुल गांधी, मायावती, केजरीवाल, नितीश कुमार, सीताराम येचुरी, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह से नरेंद्र मोदी प्रधानमन्त्री के रूप में लाख दर्जे बेहतर हैं।

राज्य और क्षेत्रीय स्तर पर राष्ट्र स्तर से अलग निर्णय लिए जाने में कोई हर्ज नही है।
अलग अलग राज्यों में राजनैतिक परिस्थितियां भिन्न होती हैं इसलिए आकलन और चयन क्षेत्रीय स्तर पर करना चाहिए।
चयन का मापदण्ड चयनकर्ता के विवेक पर निर्भर करता है
मेरे अनुसार विभिन्न प्रदेशों हेतु सर्वाधिक उपर्युक्त दल निम्न प्रकार हैं।।

1--जम्मू कश्मीर-----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--यहाँ राष्ट्र विरोधी ही क्षत्रिय विरोधी हैं।

जम्मू कश्मीर में बीजेपी सरकार ही राष्ट्र/राज्य और क्षत्रिय हित में है।

2--पंजाब,हरियाणा----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--जाटवादी मानसिकता

कांग्रेज़ और चौटाला की इनेलोद के मुकाबले बीजेपी/अकाली दल ही हरियाणा पंजाब में बेहतर है,पंजाब में अलगाववादी केजरीवाल की पार्टी के समर्थन में हैं उसका जीतना राष्ट्रहित में नही होगा।

3--दिल्ली--
क्षत्रिय हित में---AAP
प्रदेश हित में---कांग्रेस
क्षत्रियों विरोधी--कोई नही

दिल्ली में पहली बार आम आदमी पार्टी ने ही क्षत्रियो को ठीक ठाक प्रतिनिधित्व दिया है, पर अपनी गिरी हुई हरकतों और हाल के केजरी के राष्ट्रद्रोही बयान से इनकी विश्वसनीयता और नीयत संदेहास्पद है।

4--हिमाचल प्रदेश----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी,कांग्रेस दोनों
प्रदेश हित में---बीजेपी,कांग्रेस दोनों
क्षत्रियों विरोधी--ब्राह्मणवाद

हिमाचल प्रदेश में दोनों ही मुख्य दलों में राजपूतो का वर्चस्व है,इन्हें बारी बारी से आजमाया जा सकता है, चर्चा है कि बीजेपी हिमाचल प्रदेश में जेपी नड्डा को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट कर रही है,अगर कांग्रेस सरकार ने सही विकास किया हो तो इस परिस्थिति में उसे दोबारा आजमाने में कोई हर्ज नही है।।

5--उत्तराखण्ड----
क्षत्रिय हित में---कांग्रेस
प्रदेश हित में---कांग्रेस
क्षत्रियों विरोधी--ब्राह्मणवाद

उत्तराखण्ड में अभी तक बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों ने राजपूतो की उपेक्षा की है किन्तु अब कांग्रेस ने हरीश रावत को सीएम बनाया है जो राज्य का भरपूर विकास कर रहे हैं,अत: उत्तराखण्ड में पुन: हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनने में कोई हर्ज नही है।

6--उत्तर प्रदेश-----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--बसपा, सपा, दलितवाद, पूरब में ब्राह्मणवाद, मध्य ओर पश्चिम उत्तर प्रदेश में अहीरवाद, जाट-गूजरवाद, मुस्लिमवाद

उत्तर प्रदेश में पिछले डेढ़ दशक से सपा बसपा के शासन की वजह से उनके कोर वोटबैंक अहीर, मुस्लिम और दलितों की ताकत बहुत बढ़ गयी है,
क्षत्रिय राजपूत,स्वर्णो और बाकि हिंदुओं की हालत इनकी प्रजा जैसी हो गयी हैं।
सपा बसपा की सरकारो में सिर्फ अहीर मुस्लिम और दलितों को ही ताकत,नोकरिया,सरकारी ठेके,सम्मान मिलता है।
ये दल राजपूतों को सांसद विधायक के टिकट और मंत्री पद तो देते हैं पर कभी सत्ता में भागीदारी न देकर राजपूतो को तुच्छ सूबेदार बनाकर रखना चाहते हैं,
और इन राजपूत सूबेदारों को भी जब चाहे जलील करके दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर बाहर कर देते हैं।
राजा भैया, अमर सिंह, राजा महेंद्र अरिदमन सिंह भदावर,आनन्द सिंह, राजकिशोर सिंह, धनञ्जय सिंह, बादशाह सिंह इसके प्रमुख उदाहरण है।।

उत्तर प्रदेश में स्वर्णो को अपना अस्तित्व बचाना है तो 2017 विधानसभा चुनाव अंतिम मौका है,इन सपा बसपा जैसे जातिवादी और क्षत्रिय हिन्दू विरोधी दलों से मुक्ति पाने का

इस बार भी चूक गए तो चिरस्थाई गुलामी का जीवन जीने को विवश होना पड़ेगा,
बीजेपी में लाख बुराई हो, वो क्षत्रिय हित, स्वर्ण हित के मुद्दों पर खुलकर नही बोलते पर सपा बसपा कांग्रेस की बजाय यूपी में बीजेपी ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।

7--बिहार,झारखण्ड-----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--आरजेडी, जेडीयू ,नवसामन्तवाद, नक्सलवाद ,भूमिहारो का जातिवाद

बिहार में भी पिछले 25 साल से आरजेडी जेडीयू के शासनकाल में अहीरों और कुर्मियो का शासन स्थापित हो गया है, क्षत्रिय और बाकि स्वर्ण हाशिए पर हैं।
गत विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपनी लचर रणनीति से चूक गयी पर सही रणनीति बनाए तो अगली बार जीत सम्भव है।

बिहार में भी यूपी की तरह ही बीजेपी सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।

8--मध्य प्रदेश---
क्षत्रिय हित में---कांग्रेस
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी---ब्राह्मणवाद

मध्य प्रदेश में बीजेपी सरकार से पहले क्षत्रियों की दमदार उपस्थिति थी जो पिछले डेढ़ दशक के बीजेपी शासन में कमजोर हुई है।हालाँकि कांग्रेस सरकार में जो राजपूत मुख्यमंत्री बने वो क्षेत्रीय आधार पर ही जातिवाद करते थे,बाकि क्षेत्रों के राजपूतो की वो उपेक्षा करते थे,
जैसे दिग्विजय सिंह चम्बल बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड के राजपूतो की उपेक्षा करते थे
वहीँ अर्जुन सिंह चम्बल और बुन्देलखण्ड और मालवा के राजपूतो की उपेक्षा करते थे।।

व्यापम घोटाले के कारण ओबीसी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गद्दी जाने पर नरेंद्र सिंह तोमर और नन्दकुमार सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हों सकते हैं।।
कांग्रेस से भी कोई राजपूत मुख्यमंत्री उम्मीदवार आ सकता है।।

यहाँ विकास के मामले में बीजेपी कांग्रेस पर भारी है पर कांग्रेस को आजमाने में भी कोई हर्ज नही है।

9--छत्तीसगढ़----
क्षत्रिय हित में---बीजेपी
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--आदिवासी वाद

10--गुजरात---
क्षत्रिय हित में---कांग्रेस
प्रदेश हित में---बीजेपी
क्षत्रियों विरोधी--मोदी जी ,क्योंकि उन्होंने गुजरात के एक भी राजपूत को न लोकसभा न राज्यसभा में भेजा।।

गुजरात में लम्बे समय बाद पटेल दलितों और मुसलमानो की एकजुटता से बीजेपी सरकार के जाने के आसार साफ़ दिख रहे हैं,राजपूतो की बीजेपी और मोदी ने पूर्ण उपेक्षा की है अत: यहाँ राजपूतो के लिए बीजेपी जीते या हारे कोई फर्क नही पड़ता।।

11--राजस्थान---
क्षत्रिय हित में---अब कोई नही (पहले बीजेपी थी)
प्रदेश हित में---कांग्रेस
क्षत्रियों विरोधी---जाटवाद (अब दोनों प्रमुख दलों में बुरी तरह हावी)

राजस्थान में राजपूतो ने ही बीजेपी को पाल पोसकर बड़ा किया और अपने खून से इसकी जड़ों को सींचा है लेकिन आज अहंकारी वसुंधरा कदम कदम पर राजपूतो की उपेक्षा और उत्पीड़न पर उतर आई है और जाटों का खुलकर पक्ष ले रही है,

आरक्षण पर कभी जाटों कभी गूजरों से वायदा करके इसने राज्य में कई बार आरक्षण की आग लगवाई,और भाईचारा खत्म किया।।कांग्रेस सरकार राजस्थान में बीजेपी से बेहतर रही है।
जनमानस भी इस बार वसुंधरा के खिलाफ है,
लेकिन दिक्कत यह है कि राजस्थान कांग्रेस पार्टी में जाटों का जबरदस्त वर्चस्व है, हमेशा जाटों को कांग्रेस में राजपूतो से 2 से 3 गुना प्रतिनिधित्व मिलता है,

कांग्रेस में राजपूतों को ठीकठाक प्रतिनिधित्व मिले तो अगली बार एकतरफा कांग्रेस को समर्थन देकर वसुंधरा का अहंकार चूर करके बीजेपी के समक्ष राजपूतो की ताकत का प्रदर्शन किया जा सकता है,जिसका दूरगामी लाभ राजपूत समाज को अवश्य होगा।किन्तु ऐसा न हो कि वसुंधरा की हार और कांग्रेस की जीत का श्रेय राजपूतो की बजाय जाट गूजर मीणाओं को मिले और राजपूत फिर उपेक्षा का शिकार हों।

12--महाराष्ट्र/कर्नाटक/उड़ीसा व् दक्षिण पूर्वी भारत---
महाराष्ट्र में खानदेश क्षेत्र और मुम्बई व् कई इलाको में राजपूत आबादी है,5 विधायक राजपूत हैं हाल ही में जयकुमार रावल को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।।
कर्नाटक में कांग्रेस से राजपूत मुख्यमंत्री धर्मसिंह रह चुके हैं ,बीजेपी के आनन्द सिंह भी कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं।।
उड़ीसा में कई क्षत्रिय राजपरिवार राजनीती में हैं सुदूर दक्षिण भारत में भी राजपूत हैं।
इन सभी जगह प्रादेशिक और क्षेत्रीय स्तर पर समर्थन का निर्णय लिया जा सकता है।

अक्सर राजपूत समाज में चर्चा होती है कि कोई भी दल राजपूत हितैषी नही है, ये बिलकुल सच है,
हितैषी बनाने के लिए पहले हमे अपनी ताकत दिखानी पड़ेगी और ताकत आएगी एकजुटता से।
एकजुट होकर किसी भी दल को हरा या जिताकर नही दिखाएंगे तब तक कोई पूछ नही होगी।

ऐसे नही कि सपा अहिरो को सरकारी नोकरिया दें, राजपूत युवा बेरोजगार घुमे,फूलन देवी को टिकट दे और साथ में कुछ राजपूत क्षत्रपो को भी टिकट दे तो हम भूलकर सपा के राजपूत उम्मीदवार को जीता दें,
या बसपा तिलक तराजू तलवार का नारा दे, राजा भैया स्वाति सिंह का उत्पीड़न करे,और एक टिकट ठाकुर जयवीर सिंह को दे दें तो जयवीर सिंह को जिता दो!!!!

जो क्षत्रिय विरोधी दल हैं उन्हें उनके राजपूत क्षत्रपों के बावजूद धूल में नही मिलाएंगे तो ये हमारी कमजोरी समझकर हमारा विरोध और उत्पीड़न जारी रखेंगे।।

अभी हमारे सामने राष्ट्रीय स्तर पर दो विकल्प है।
1--बीजेपी जो न खुलकर राजपूतो के साथ है न स्वर्णो के,
पर राष्ट्रहित में है और मुस्लिम तुष्टिकरण नही करती,आतंकवादियो पर कठोर है, राजपूतों को सबसे ज्यादा टिकट और पद भी बीजेपी ही देती है।।
भ्र्ष्टाचार परिवारवाद में पीछे है।
2---कांग्रेस सपा बसपा आरजेडी जेडीयू आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियां जो राजपूतो ,स्वर्णो की कट्टर दुश्मन हैं, वोटबैंक के लिए आतंकवादियो के तुष्टिकरण से भी बाज नही आते,
दलित एक्ट, आरक्षण, मुस्लिम पर्सनल ला सब इन्ही की देन हैं और राष्ट्रिय सुरक्षा के मुद्दों पर भी राजनीति से बाज नही आते।।
भृष्टाचार और घोटालों में इन्होंने सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं,

राजपूतो को इनमे से एक चुनना है।।

राजपूत समाज जब तक एकजुट होकर किसी भी दल विशेष को किसी भी राज्य में हराने या जिताने की क्षमता विकसित नही करेगा,
तब तक हमे वो सम्मान नही मिलेगा जो राजस्थान हरियाणा में जाट को, गुजरात में पटेल को, महाराष्ट्र में मराठा को, यूपी में अहीर मुस्लिम दलित और ब्राह्मण को,और बिहार में अहीर कुर्मी को मिलता है कर्नाटक में वोक्कालिंग और लिंगायत समाज को मिलता है।।

हमे अपना सबसे बड़ा शत्रु पहचानकर उसे नेस्तनाबूद कर देना चाहिए, फिर जो हमारा होकर भी हमारे हितों की अनदेखी करे उसको सबक सिखाना चाहिए,
कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर अभी बीजेपी और मोदी जी का कोई विकल्प नही है पर प्रदेश और क्षेत्रीय स्तर पर स्थानीय मुद्दों और गुणदोष के आधार पर निर्णय लिए जाने में हर्ज नही है।

हर राज्य में कौन सा राजनैतिक दल क्षत्रियो का हितैषी है इस पर मैंने अपने विचार इस लेख में दिए हैं,कृपया ब्लॉग लिंक खोलकर पढ़ें और अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर अंकित करें।।

Friday, October 7, 2016

साठा-चौरासी के राजपूतों की ताकत के आगे झुकी अखिलेश सरकार,शहीद रविन शिशौदियाका अंतिम संस्कार हुआ


साठा-चौरासी की के आगे झुकी अखिलेश सरकार------

बिसहाडा-दादरी में शहीद रवि शिशोदिया की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु के मामले में क्षत्रियों के दबाव के आगे झुकी यूपी सरकार----
कई मांगो पर सहमति के बाद भाई रविन शिशौदिया का दाह संस्कार कर दिया गया।।
समझोते में क्षत्रिय संगठन और बीजेपी नेता ठाकुर संगीत सोम,केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा और कई हिन्दू संगठन व् साठा चौरासी के राजपूत शामिल हुए,

निम्न मांगो पर प्रदेश सरकार ने सहमति दी।
1--इस मामले की सीबीआई जांच करवाई जाएगी।
2--प्रदेश सरकार ने मुवावजा राशि दस लाख से बढ़ाकर 20 लाख की, जबकि परिवार को 05 लाख रूपये की सहायता की घोषणा ठाकुर संगीत सोम ने अपनी ओर से की।।
3--मृतक भाई रविन की पत्नी को नोकरी दिलाने का आश्वासन दिया गया।
4--जेलर को हटाया गया ,प्रशासन से दस दिन में मामले की जांच रिपोर्ट मांगी गयी, जाँच में जेलर के दोषी पाए जाने पर तुरन्त निलम्बन का आश्वासन दिया गया।।
5--गौहत्या के आरोपी जान मौहम्मद की जांच में दोषी पाए जाने पर गिरफ्तारी की बात प्रदेश सरकार ने कही,
6--मृतक शहीद रविन की संतान का पूरा खर्च जिलाधिकारी महोदय ने उठाने की बात रखी।

हालाँकि कई मांगे पूर्णतया पूरी नही हुई जिससे क्षत्रियो में भारी रोष है, अभी भी क्षत्रिय जान मौहम्मद की गिरफ्तारी की मांग पर अड़े हैं। यूपी की क्षत्रिय स्वर्ण हिन्दू विरोधी समाजवादी पार्टी से इससे अधिक आशा भी नही की जा सकती है,क्योंकि उनकी प्राथमिकता बस मुस्लिम और अहीर है, राजपूत और बाकि हिन्दुओ से इन्हें कोई लेना देना नही है।
साथ ही मृतक का दाह संस्कार भी अधिक दिनों तक रोकना सम्भव नही था,

फिर भी कई मांगो पर प्रदेश की क्षत्रिय स्वर्ण हिन्दू विरोधी सरकार को झुकाकर एक नया इतिहास रचा गया है और साठा चौरासी के राजपूत भाई इसके लिए बधाई के पात्र हैं।।

अब इस आक्रोश को बनाए रखने की जरूरत है,जब भी चुनाव आएं सपा बसपा जैसी जातिवादी पार्टियों को धराशाई करना ही हर क्षत्रिय स्वर्ण और हिन्दू के लिए उचित रहेगा।।

अमर शहीद रविन राणा शिशौदिया को शत शत नमन
जय भवानी।।

Wednesday, October 5, 2016

क्या हिंदुत्व की रक्षा के लिए शहीद हुए इस गरीब राजपूत युवा को क्षत्रिय और हिन्दू संगठन न्याय दिलाएंगे??

हिन्दुत्व और गौरक्षा के लिया शहीद हुऐ भाई रवि राणा (रविन राणा) का पार्थिव शरीर बिसहाडा गावँ पहुँचा 😢😢

क्या आप जानते हो, बिसहाडा के इन गरीब और निर्दोष राजपूत भाइयों की कोई मदद पिछले एक साल से न तो किसी राजपूत संगठन ने की है, न किसी क्षत्रिय नेता ने,न ही बीजेपी ने और न ही किसी हिन्दू संगठन ने......

इनकी मदद किसी ने की तो वो की एक मुस्लिम से हिन्दू बने सोशल मिडिया एक्टिविस्ट भाई तुफैल चतुर्वेदी ने,जिन्होंने सोशल मिडिया पर मदद की अपील करके कई लाख रुपया इक्कठा करके इन राजपूत परिवारो को क़ानूनी लड़ाई लड़ने को दिया है!!!
उनके खाते में यथासम्भव क्षमता के अनुसार सहयोग हमने भी किया है, आगे भी जरूर करूँगा।।।
हिंदुत्व की राजनीती करने वाले राजनैतिक दल/संगठन विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, तोगड़िया,आरएसएस, कहाँ हैं???

क्षत्रियों के नेतृत्व का दावा करने वाली दर्जनों अलग अलग बनी हुई क्षत्रिय महासभाएं कहाँ हैं????
हरवंश सिंह जी की क्षत्रिय महासभा??
संजय सिंह (अमेठी) की क्षत्रिय महासभा??
दिग्विजय सिंह वांकानेर की क्षत्रिय महासभा??
कुंवर अजय सिंह की क्षत्रिय महासभा??
महेंद्र सिंह तंवर की क्षत्रिय महासभा??
जय राजपुताना/करणी सेना/राजपूत सभाएं कहाँ हैं आज???

कहाँ हैं सोशल मिडिया पर इन संगठनो और उनके नेताओं का प्रचार करते हुए महारथी??

अख़लाक़ की मौत को मानवता की हत्या बताने वाला तथाकथित राजपूत हितैषी पत्रकार श्रीपाल शक्तावत कहाँ है??
क्या इस गरीब राजपूत की यूँ तड़पा-तड़पा कर मौत उसकी नजर में मानवता की हत्या नही है??

कहाँ गया अवार्ड वापसी गैंग??
मोमबत्ती गैंग??आदर्श लिबरल गैंग??
कहाँ गया भांड मिडिया???

कहाँ हैं दियाकुमारी और उसकी निजी संपत्ति के विवाद को राजपूत समाज की लड़ाई बताने वाले उसके चमचे???
क्या इस गरीब राजपूत की लड़ाई लड़ने दिया कुमारी आएगी??

कहाँ हैं गृहमंत्री राजनाथ सिंह ,राजा भैया जैसे राजनेता और सोशल मिडिया पर प्रचारित क्षत्रिय बाहुबली????

क्या गौमाता/हिंदुत्व और राजपूताने की शान बचाने के लिए शहीद हुए अपने गरीब और शूरवीर राजपूत भाई को न्याय नही दिलवाओगे??

Tuesday, October 4, 2016

मोदीभक्त मूर्ख हो सकते हैं पर आपियों और कांगियो की तरह गद्दार नही हो सकते

सोशल मिडिया पर मेरा व्यक्तिगत अनुभव विभिन्न दलो के समर्थकों की मनोदशा पर----

1---मोदीभक्त या अंधभक्त------

सोशल मिडिया पर मोदीभक्त अनाप शनाप कॉपी पेस्ट, फोटोशॉप डालकर अपने नेता की झूठी वाहवाही कर सकता है और दूसरे नेता का चीरहरण भी कर सकता है,
सिर्फ खम्भे गाड़ने पर जय हो जय हो का गायन शुरू कर देता है,पीतल को सोना और गीदड़ को शेर बताकर प्रचारित कर देता है,

पर 60% मोदी भक्त ऐसे हैं जो सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस रखते हैं, और उम्मीद पूरी न होने पर मोदी सरकार और बीजेपी की नीतियों की धज्जियां उड़ाने में कभी संकोच नही करते।।

कुल मिलाकर मोदीभक्त मुर्ख ,फेकू, मन्दबुद्धि, गपोड़ी ,ढपोरशँख, अंधभक्त हो या तुचिये तो हो सकते हैं

पर कोई मोदीभक्त कभी देशद्रोही नही हो सकता,देश उसके लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होता है क्योंकि भक्त मूलत: राष्ट्रभक्त ही होते हैं।।

2---आपिये और कांगिये----
मोदिभक्तों और आपियों में सबसे बड़ा फर्क ये है कि मोदी भक्तों में कुछ अंधभक्तों को छोड़कर अधिकांश मोदी सरकार या बीजेपी की खिंचाई करने से नही चूकते,
सोशल मिडिया पर मोदी की खिंचाई की शुरुवात ही भक्तों ने की क्योंकि वो सही को सही और गलत को गलत लिखने का साहस रखते हैं,

लेकिन मैंने आज तक किसी आपिये को केजरीवाल या आम आदमी पार्टी की आलोचना करते नही देखा,जब भी कोई ऐसा मुद्दा आता है तो इनकी जबान सिल जाती है या ये कुतर्क करने लगते हैं,
मेरी मित्रता सूचि में भी कई आपिये हैं,
कुछ ओपन और कुछ चोरी छिपे,
जिन्हें आपिया कहलाने में शर्म आती है, वो आपियो के स्लीपर सेल की तरह काम करते हैं,

ये आपिये ,कांगिये कभी अपने दुष्ट गद्दार नेताओं या उनकी नीतियों कारगुजारियों की आलोचना नही करते,
पर कोई देशभक्त बीजेपी समर्थक बीजेपी की किसी मुद्दे पर आलोचना करता है तो इनकी बांछे खिल जाती है,
इनका खून कई सौ एमएल बढ़ जाता है।
ये सोचते हैं कि अच्छा है मोदी अपने भक्तो में बदनाम होगा तो भक्त इनके धुरतेश्वर की शरण में आ जाएंगे,

केजरीवाल और दिग्विजय सिंह जैसे धूर्त बाटला हाउस एनकाउंटर में इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत पर सवाल खड़े करते हैं,कश्मीर में आत्मनिर्णय के अधिकार की मांग का समर्थन करते हैं ,देशद्रोही कन्हैया का समर्थन करते हैं,
पर किसी आपिये कांगिये ने कभी इनके शर्मनाक बयानों की आलोचना नही की।।

और अब इन दुष्टो ने भारतीय सेना की एलओसी पार कार्यवाही पर भी सवालिया निशान लगाकर पाकिस्तान की मदद की है,पर कोई भी गैरतमंद आपिया अभी तक केजरीवाल के देशद्रोही बयान की भर्त्सना करने सामने नही आया है।।।

वहीँ आपिये और कांगिये अपने नेताओ के देशद्रोही कृत्यों पर भी चुप्पी साधकर साबित कर रहे हैं कि ये न सिर्फ मुर्ख हैं, बल्कि धूर्त, गद्दार, और पेड़ वर्कर हैं।।

कुल मिलाकर मोदीभक्त मुर्ख हो सकते हैं अंधभक्त हो सकते हैं पर आपियो और कांगियो की तरह गद्दार नही हो सकते।।

Monday, October 3, 2016

इस बार भी बम्पर मतों से जीतेंगे हिन्दू हृदय सम्राट संगीत सोम

आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फायरब्रांड नेता ठाकुर संगीत सोम को घेरने की पूरी तैयारी कर ली है,
सरधना विधानसभा सीट पर पहले ही घोषित सपा उम्मीदवार अतुल प्रधान मुकाबले से बाहर थे,
मुख्य मुकाबला संगीत सोम और बसपा के विवादित कट्टरपंथी नेता हाजी याकूब कुरैशी के पुत्र इमरान कुरैशी के बीच ही था,पर मुस्लिम मतो में अतुल प्रधान की सेंधमारी से संगीत सोम भारी मतों से जीतते नजर आ रहे थे।।

अतुल प्रधान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी युवा नेता है और आज सपा के प्रदेश अध्यक्ष और अखिलेश के चचा शिवपाल यादव ने अतुल प्रधान समेत अखिलेश के कई करीबियों के टिकट काट दिए हैं,

अतुल प्रधान (गुर्जर) का टिकट काटकर पिंटू राणा को दिया गया है जो राजपूत समाज से है,सपा जानती है कि वो इस सीट पर मुकाबले से बिलकुल बाहर है पर हर हाल में उसका लक्ष्य संगीत सोम को विधानसभा पहुंचने से रोकना है,भले ही बसपा यहाँ जीत जाए,
इसीलिए अतुल प्रधान का टिकट काटकर पिंटू राणा को राजपूत वोट काटने के लिये खड़ा किया गया है।।

इस परिवर्तन से जहाँ पिंटू राणा करीब 5 हजार अधिकतम राजपूत वोट काट सकते हैं जो संगीत सोम से नाराज होने के कारण अतुल प्रधान को भी मिलते,
लेकिन अतुल प्रधान का टिकट कटने से संगीत सोम को गुर्जरो के कम से कम 15 हजार अतिरिक्त वोट मिलेंगे जो पहले अतुल प्रधान को मिलने थे,
इसका प्रमुख कारण यह भी है कि कुछ दिनों पहले प्रधान के समाज की एक लड़की को गैर सम्प्रदाय के युवक द्वारा ले जाने के मुद्दे पर संगीत सोम ने उनका डटकर साथ दिया था जबकि अतुल ने चुप्पी साध ली थी,संगीत सोम की कड़ी चेतावनी से प्रशासन के हाथ पांव फूल गए और वो हिन्दू बेटी अपने घर आ गयी।।

इस स्थिति में अतिरिक्त गूजर वोट संगीत सोम को मिलेंगे जो निर्णायक सिद्ध हो सकते हैं,

लेकिन अतुल प्रधान को मिलने वाले अधिकतम 15-20 हजार मुस्लिम वोट भी अब बसपा के कुरैशी को मिलेंगे जिससे सरधना विधानसभा में बीजेपी और बसपा में सीधा जोरदार मुकाबला होने की सम्भावना है,

लेकिन इतना तय है कि ध्रुवीकरण में इस बार भी ठाकुर संगीत सिंह सोम जबरदस्त जीत हासिल करके अपने सभी राजनैतिक विरोधियो को करारी मात देने में सफल होंगे क्योंकि जनसम्पर्क और समर्थकों के लिए जान लड़ा देने का जो जज्बा संगीत सोम में हैं वो पुरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसी और नेता में नही है।

अतुल प्रधान के लिए भी यह टिकट कटना एक बड़ा सबक है,उन्होंने पुरे 5 साल तक संगीत सोम की राह में कांटे बिछाने का प्रयास किया,कई झूठे मामलो में सत्ता का सहारा लेकर सोम और उनके परिवार को फंसाने की पूरी कोशिस की,लेकिन उसे कभी कामयाबी नही मिली,
उसने राजपूतो में भी कुछ स्वार्थी तत्वों का सहारा लेकर सेंधमारी का प्रयास किया पर सफलता नही मिली,
उल्टा संगीत सोम ने गुर्जर समाज के बन्धुओं की लड़ाई लड़कर उनके दिलों में अपनी जगह बना ली,संगीत सोम की छवि देश भर में हिन्दू हृदय सम्राट की है वहीं अतुल प्रधान 5 साल सपा की सरकार और अखिलेश से नजदीकी का लाभ उठाकर भी अपने समाज तक का दिल नही जीत पाए।

अतुल प्रधान को अगर लम्बी राजनीती करनी है तो उसे संगीत सोम के संघर्ष और जूनून से बहुत कुछ सीखना पड़ेगा।