Wednesday, August 31, 2016

सगोत्र विवाह करने वाले के समर्थक क्या राजपूत कहलाने लायक हैं??

आज एक महान राजपूत युवा ने राजस्थान के मौजूदा विवाद पर ऐसा गूढ़ ज्ञान दिया,कि मैं धन्य हो गया 😢😢 😢😢

आप भी पढ़िए और अपना माथा पीटये!!!!!!!!

उसके अनुसार दरअसल कुलकलंका अपने पिता की इकलौती संतान थी,अगर उसका विवाह किसी दुसरे वंश में किया गया होता तो अरबों खरबो की संपत्ति दूसरे वंश के कब्जे में चली जाती,
इसलिए पुश्तैनी जायदाद बचाने के लिए कुलकलंका ने अपने ही वंश में सगोत्र विवाह कर लिया!!!!!😢😢

मतलब जिस बाप की भी इकलौती संतान बेटी हो,वो अपनी जायदाद बचाने को घर परिवार में ही उसे ब्याह दे!!!!!!!!!!!
😷😷😷😷😷😷😷😷😷😷😷😷😷😷😷

उस खाजपुत का यह कुतर्क पढ़ते ही मैं एकदम से किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया!!!!

थोड़ी देर में जब होश आया तो बहुत पहले पढ़ा हुआ एक लेख याद आ गया जिसमें किसी पुराण के हवाले से लिखा था कि कलयुग में क्षत्रिय नही होंगे,
वो मिट जाएंगे,
शूद्र/म्लेच्छ क्षत्रियो के वेश में प्रकट होंगे और क्षत्रिय होने का दावा करेंगे!!!!

अनेक इतिहासकारो ने पुराणों के इस कथन को निराधार माना है,मैं भी अब तक इसे निराधार असत्य मानता था,

किन्तु हाल ही में इस अरबपति कुलकलंका को समर्थन देने के लिए राजपूत संगठनो और उनके नेताओं में मची होड़ ने फिर से आत्ममंथन को मजबूर कर दिया है,
कि------
क्या पुराणों का वो कथन सही था????
क्या राजपूत वाकई में क्षत्रिय हैं????

जब क्षत्रियोचित आचरण ही नही है तो काहें के क्षत्रिय????
और क्षत्रिय तो छोड़िये,अब राजपूत भी नही बचे!!

अबे गोले हो गए गोले,
गोले गुलाम का मतलब समझते हो न?????
गोला, गुलाम मतलब हरामी,वर्णसंकर,गन्दा खून👊👊👊👊

अब इस घटना के बाद यह सिद्ध करना और मुश्किल हो जाएगा कि हम वाकई में राम कृष्ण के वंशज हैं
😢😢😢😢😢😢😢😢

माफ़ करना भाइयो आज मन बहुत उदास है बुरा लगा हो तो क्षमा चाहूँगा,😢😢😢😢

Tuesday, August 30, 2016

हरित प्रदेश जाटलैंड या मुस्लिम प्रदेश????

पश्चिमी उत्तर प्रदेश को कुछ लोग जाटलैंड के रूप में प्रचारित करते हैं और कुछ इसे गूजरलैंड बताते हैं

जबकि सत्य इससे कोसो दूर है,पश्चिम उत्तर प्रदेश के 24 जिलों में मात्र 7-8 जिले ही जाट गूजर बाहुल्य हैं
बाकि जिलों में इनकी संख्या कम है जबकि राजपूत सभी जिलों में पाए जाते हैं,
अगर जनसंख्या की बात करे तो यहाँ 30 से 50% तक मुस्लिम आबादी है और 20 से 25% तक दलितों की भारी जनसंख्या है,

पश्चिम उत्तर प्रदेश में राजपूत 8%, गूजर 4%, जाट 6%,
और अहीर 7% हैं।
इस प्रकार वेस्ट यूपी के अलग अलग जिलो में दलित और मुस्लिम मिलकर कुल आबादी में 50 से लेकर 70% तक हैं तो आप खुद समझ लें कि इसे जाटलैंड गूजरलैंड कहने वाले कितने बड़े मुर्ख हैं,

एक और आंकड़ा------
जिसे कुछ मुर्ख जाटलैंड बोलते हैं वहां के 24 जिलों की करीब 108 सीटों में सबसे ज्यादा विधायक राजपूत और मुसलमान हैं
कुल विधायक जातिवार आंकड़ा--
राजपूत --15
मुसलमान--15
जाट--04
गूजर--07
अहीर--13

अब आप खुद देख लीजिये कि जिस जाट जाति के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 108 में से मात्र 4 विधायक हैं वो इसे जाटलैंड बताकर खुश होते हैं

अगर यूपी से पश्चिम उत्तर प्रदेश हरित प्रदेश के नाम से अलग होकर नया प्रदेश बनता है तो यह पूरी तरह से मुस्लिम बाहुल्य प्रदेश होगा,हो सकता है एक दशक के भीतर यहाँ मुस्लिम बहुमत में आ जाएं ,
अभी भी इस क्षेत्र में जय भीम और जय मीम की जोड़ी सबको धोकर रख देगी।।

अगर ऐसा हुआ तो जो मुर्ख अलग हरित प्रदेश बनवाकर इसे जाटलैंड समझकर इस पर राज करने के ख्वाब देख रहे हैं उन्हें आने वाले समय में छुपने को भी जगह नही मिलेगी....

सन्दर्भ----http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/10/west-up-is-rajput-landnot-jatland.html?m=1

सगोत्र विवाह को शर्मनाक मूक समर्थन

संसार के उत्तम कुल में जन्म लेने के पश्चात भी अपनी तुच्छ पाशविक इच्छाओ के लिए लाखों वर्षो से चली आ रही रक्त की पवित्रता को नष्ट करने वाली कुलकुलंका के लिए आज कुछ सैनिक विलाप करते नज़र आ रहे है!!!!!!!!
#Irony

जिस कुल में हजारों शाके व जौहर इसलिए होते थे कि कुल पर कलंक न लगे ,
क्या उस परम्परा के वंशजो का ऐसे नीच लोगो के साथ खड़े होने पर समाज में गलत संदेश नहीं जायेगा ?????
क्या इससे वही पाप दोहराने का प्रोत्साहन समाज के युवाओं को नही मिलेगा????  
कुलकलंका के हिमायती क्या अपने परिवार के बच्चों से भी ऐसा ही घिनोना कृत्य किये जाने पर उन्हें अपना लेंगे??

इस तामझाम में समाज व माँ करणी के नाम को घसीटना कितना उचित है??
जिसका आर्थिक हित सधता हो वो जो करना हो करे,
जिनको साथ देना है बेशक देवे पर समाज व माँ करनी के नाम का गलत उपयोग क्यों???

इन राज परिवारो पर जब खुद पर बीतती हे तभी समाज याद आता है !!!
जब समाज आरक्षण, संस्कृति पर खिलवाड़ ,भूस्वामी आंदोलन, फिल्मो में गलत चित्रण, इतिहास से छेड़छाड़ आदि मुद्दों पर आंदोलन कर रहा होता है,
तब ये लोग किले महलो से बाहर आकर समाज के साथ खड़ा रहना तो दूर एक स्टेटमेंट देने तक से घबराते हैं।
ऐसे में जब खुद पर बीतती है, तो समाज से किस अधिकार के तहत उम्मीद करते है कि वो उनके साथ खड़ा हो???

आजादी के वक्त राजपरिवारों ने सीलिंग एक्ट से बचने के लिए अपनी जमीन महल आदि सरकार को समर्पित कर दिए,
तब याद नहीं आया की सैकड़ो वर्षो से हमारे लिए शीश कटाने वाले या सेवा करने वाले राजपूत समाज के गरीबो में ये सम्पतिया जागीरदारी उन्मूलन से पूर्व ही दे दी जाए??????

यहाँ तक की यदि समाज के सामूहिक उपयोग हेतु भी कोई भवन या जगह इन लोगो ने नहीं दी!!

कैसे रजवाड़े???किसके रजवाड़े???
कौन सी सेना???
गरीबो की या अमीरो की??
या दलालों की??

जय करणी माता,
शुभरात्रि.....

सामन्तवाद बनाम नवसामन्तवाद

अगर एक दबंग जाति ज़मीन के बड़े हिस्से पर दबदबा बनाने में कामयाब हो जाती है तो फिर वो शिक्षा पर नियंत्रण करने की फ़िराक़ में लग जाती है.
ज़मीन, शिक्षा और चुनावी प्रणाली, सत्ता तक पंहुचने के तीन रास्ते हैं और दबंग जातियां इन तीनों पर अपना पूरा अधिकार स्थापित करना चाहती हैं.

पाटीदारों का इतिहास इसका उदाहरण है. समाजविज्ञानियों का मानना है कि पाटीदार या पटेल एक बड़ी प्रभावशाली जाति के रूप में उभरे.
उन्होंने ज़मीन पर नियंत्रण को राजनीति पर दबदबा क़ायम करने के लिए इस्तेमाल किया.
ताक़तवर और अधिक ताक़तवर बनना चाहते हैं. ऐतिहासिक रूप से पाटीदार अंग्रेजों की ईजाद हैं, जो अंग्रेजों के द्वारा शुरू किए गए ज़मीन की पट्टीदारी व्यवस्था में फले फूले.
वर्ण व्यवस्था में उनका ताल्लुक नीची जाति से रहा है लेकिन उन्होंने ख़ुद का संस्कृतीकरण किया.
पटेल या पाटीदार समुदाय के लोगों ने भूमि और खेतीबाड़ी से बाहर निकल कर व्यापार जगत में क़दम रखा. विदेशों में आज वे मोटल व्यवसाय का पर्यायवाची बन गए हैं.

अब सवाल यह उठता है कि जो जाति इतनी ताक़तवर और प्रभावशाली है, उसके लोगों में इतना गुस्सा क्यों है कि लाखों ने अहमदाबाद शहर को पूरी तरह ठप कर दिया.
ज़मीन के बल पर हमेशा बेहतर शिक्षा हासिल नहीं की जा सकती और न ही इसके बल पर रोज़गार हासिल किया जा सकता है.

यह आरक्षण विरोधी आंदोलन नहीं है.
पटेल यह चाहते हैं कि जाति और जाति-आधारित आरक्षण का लाभ उन्हें मिले. वे आरक्षण व्यवस्था को तभी ध्वस्त करना चाहते हैं जब वो उनके ख़िलाफ़ काम कर रही हो.

पाटीदार समुदाय के लोग जातिवादी हैं. पर भूमंडलीकरण की वजह से वे शिक्षा का महत्व समझते हैं.उन्होंने पहले जिस तरह ज़मीन पर नियंत्रण का फ़ायदा उठाया, अब उसी तरह शिक्षा का इस्तेमाल अपने हित में करना चाहते हैं.
पटेलों के विरोध का मौजूदा अर्थ यही है.
आरक्षण के खेल का नियम बदल कर अपनी सत्ता को और मजबूत करने का यह तरीका है.
सम्पन्न होकर ये नवसामन्तवादी वर्ग वही सब कर रहे हैं जिसका आरोप ये कभी सामन्तवाद के नाम पर राजपूतो पर लगाया करते थे!!

मेजर ध्यानचन्द्र सिंह बैस के साथ अन्याय क्यों?

स्वर्गीय मेजर ध्यानचन्द्र सिंह बैंस जी की जयंती के अवसर पर उनको कोटि कोटि नमन,
सचिन तेंदुलकर से बेहतर रिकॉर्ड होते हुए भी कभी इन्हें भारत रत्न नही दिया गया,वो भी खेल मंत्रालय की प्रबल संस्तुति के बावजूद!!!!!

किन्तु स्वर्गीय ध्यानचन्द्र की कीर्ति किसी भारत रत्न की मोहतज नही है
एक ऐसा रत्न जिसने राष्ट्रभक्ति के लिए एडोल्फ हिटलर तक का सुनैहरा प्रस्ताव ठुकरा दिया था,जो उनके खेल से अभिभूत होकर उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने और सेना में फील्ड मार्शल बनाने को तैयार था ,
उसी बर्लिन ओलम्पिक हॉकी फाइनल मैच को देखकर जिसमे ध्यानचन्द्र की टीम ने हिटलर की आंखो के सामने ही जर्मनी को 8-1 से रौंदकर स्वर्ण पदक जीता था!!

काश ध्यानचन्द्र जाति से दलित/ओबीसी/ब्राह्मण/मुस्लिम होते ........

क्या करणी सेना अपने उद्देश्य से भटक गयी?

राजस्थान में श्री राजपूत करणी सेना नाम का संगठन क्या सगोत्र विवाह करने वालो को राजपूत मानता है????

(सगोत्र विवाह यानि एक ही गोत्र/वंश के लड़का लड़की का विवाह यानि घोर पाप,क्योंकि एक ही गोत्र के भाई बहन माने जाते हैं)

क्या देशभर का राजपूत समाज ऐसे नीच विवाह को मान्यता देने को तैयार है???

ऐसा नीच कर्म करने वाले सम्पन्न, धनाढ्य, कथित राजसी परिवारो का महिमामण्डन करने और उन्हें राजपूत बताकर समर्थन करने वालो तुममे और शूद्र चांडालों में फिर फर्क क्या रह गया?????

फिर तुम राजपूत थोड़े ही रह गए,बल्कि गोलों से भी बदतर हो गए हो, थू है ऐसे नीच लोगो पर!!!!

हाल ही में एक राजपूत बेटी ने कुछ जाटों के उत्पीड़न से तंग होकर आत्महत्या कर ली!!!
क्या करनी सेना ने उस बेटी को न्याय दिलवाया???

एक आम राजपूत की लड़ाई लडने की बजाय अरबपति परिवार की लड़ाई वो भी उस परिवार जिसे महापाप करने के कारण समाज से बाहर किया गया हो,
लड़ने में इनका कौन सा स्वार्थ है???

खुद के आर्थिक स्वार्थ को कुछ लोग पूरे समाज की लड़ाई बता रहे हैं जबकि जाटों के उत्पीड़न से आत्महत्या करने वाली बेटी का परिवार न्याय को और समाज के सहयोग को तरस रहा है?????

वैसे भी जोधा अकबर को बन्द करवाने के संघर्ष में इनकी महान(?) भूमिका किसी से छुपी नही हैं

इन लोगो ने अपने आचरण से करणी माता के नाम का प्रयोग करने का अधिकार खो दिया,शर्म की बात है

अब आप लोग स्वयं निर्णय लें कि राजपूत हितों के लिए संघर्ष करने के लिए श्री राजपूत करणी सेना का गठन किया गया था,
क्या करणी सेना अपने उद्देश्य से भटक गयी है???

क्या करणी सेना आम राजपूतों की बजाय समाज से निष्कासित पथभृष्टो और धन्नासेठों की लड़ाई लड़कर आम राजपूतो को धोखा नही दे रही??

क्या करणी सेना महज असामाजिक और स्वार्थी तत्वों का समूह बनकर नही रह गयी???

इसका पुनरुद्धार शुद्धिकरण हो या इसे समाप्त किया जाए??

क्या रजवाड़े राजपूत हितैषी हैं??

जोधा-अकबर, वीर, एकलव्य जैसी क्षत्रियों को कलंकित करने वाली फिल्मो/धारावाहिको की शूटिंग इन्ही कथित रजवाड़ों ने अपने महलो/किलों में पैसा लेकर करवाई थी,

इतना जल्दी भूल गए????

जल्दी ही संजय लीला भंसाली भी अपनी घोर आपत्तिजनक फ़िल्म महारानी पद्मावती की शूटिंग इन्ही रजवाड़ों के महलो/किलों में इन कथित रॉयल्स को किराया इनके मुह पर मारकर करवाएगा!!!

तब इन कथित रजवाड़ों को राजपूतों के मान सम्मान की याद नही आती जब ये फ़िल्म निर्माताओं से पैसा लेकर राजपूतों को कलंकित करने वाली फिल्मो की शूटिंग करवाते हैं???

आज इनकी निजी लड़ाई राजपूत पूरे समाज की लड़ाई कैसे हो गयी???

करणी सेना और मूवमेंट फॉर सोशल जस्टिस वाले भाइयों------
आपसे राजस्थान सरकार द्वारा राजपूतों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिलाने के लिए 120 दिनों की मोहलत मांगी थी,
वो 120 दिन तो कब के पुरे हो गए!!!!

कहाँ हैं तुम्हारा ध्यान???
क्यों आरक्षण के मुद्दे पर 120 दिन पूरे होने के बाद भी चुप बैठे हो????

संजय लीला भंसाली द्वारा अपनी फ़िल्म में महारानी पद्मावती का गलत चित्रण और उसपर मेवाड़ राजघराने की चुप्पी


संजय लीला भंसाली फिर से क्षत्रियों/सनातन धर्म को कलंकित करने के लिए मेवाड़ की महारानी पद्मावती पर मूवी बना रहा है जिसमे वो धूर्त  अपने सतीत्व की रक्षा के लिये जौहर की अग्नि में जलने वाली वीरांगना महारानी पद्मावती का अपमानजनक चित्रण कर रहा है,

अगर मेवाड़ राजघराने के वर्तमान महाराणा अरविन्द सिंह मेवाड़ और लक्ष्यराज जिनका राजघराने की अरबो की संपत्ति पर कब्जा है,एक लीगल नोटिस भंसाली को भिजवा दें और महारानी का गलत चित्रण करने के विरुद्ध एक कड़ी चेतावनी संजय लीला भंसाली को दे दें तो ये मूवी तुरन्त बन्द हो जाएगी!!!

लेकिन महाराणा मेवाड़ और उनका युवराज लक्ष्यराज मेवाड़ अपने पुरखों के अपमान पर एकदम चुप्पी साधे हुए हैं,
बेहद शर्मनाक😷😷😷😷

धन्य हैं गुजरात के वीर राजपूत जिन्होंने इस हरामी भंसाली को रामलीला मूवी के मुद्दे पर धूल चटा दी थी👊👊👊👊👊

और लानत है राजस्थान के राजपूत संगठनो पर-------
जो न जोधा अकबर/वीर/एकलव्य की शूटिंग रजवाडो के महलो/किलो में रोक पाए न ही इन फिल्मो/धारावाहिको का प्रसारण रुकवाने के लिए कोई ढंग का आंदोलन कर पाए,
न किसी आम राजपूत की लड़ाई लड़ सके,

जब जोधा अकबर के मुद्दे पर हरियाणा और वेस्ट यूपी के युवा पुलिस की लाठियां खा रहे थे,उस समय ये राजपूताना के संगठन विरोध का महज दिखावा करके शांत बैठ गए थे,
👎👎👎👎👎👎