Sunday, March 19, 2017

योगी मंत्रीमंडल में ठाकुरों का वर्चस्व सम्बन्धी मीडिया के दुष्प्रचार का वायरल सच

जय श्रीराम भाइयों---
कुछ समाचार पत्र और कुछ हमारे ही बंधू योगी आदित्यनाथ जी के मंत्रीमंडल पर जातिगत आधार पर दुष्प्रचार कर रहे हैं कि इसमें ठाकुरों का वर्चस्व रहा है
कुछ हमारे बधु भी अज्ञानतावश खूब लम्बी लम्बी हाँक रहे हैं
ऐसे सभी मिडिया के बन्धु और वो राजपूत लक्डबग्घे जान लें कि---

योगी जी के मन्त्रीमण्डल में 44 में से कुल 7 मंत्री ठाकुर बने हैं जो कुल संख्या का 16% है
जबकि बीजेपी के विधायको 325 की कुल संख्या का 18% राजपूत विधायक (56) हैं

इसके अलावा
अखिलेश सरकार में राजपूत मंत्री थे 10-12
मायावती सरकार में भी राजपूत मंत्री थे 8-10
मुलायम सरकार में राजपूत मंत्री थे 21
राजनाथ सरकार में राजपूत मंत्री बने थे 19
कल्याण सिंह सरकार में राजपूत मंत्री थे 19

तो आज योगी जी की सरकार में मात्र 7 ठाकुर मंत्री बन गए तो इतनी हाय तौबा क्यों????

सच्चाई ये है कि मुलायम अक्ललेश मायावती सरकारों में कुछ को छोड़कर अधिकांश राजपूत मंत्री एकदम पंगु थे किसी काम के नही थे, मामूली से अहीर दलित अधिकारी ही उनकी बेइज्जती कर देते थे (आँखों देखी)
अब सुरेश राणा, मोती सिंह जैसे प्रभावी मंत्री उनसे लाख दर्जे बेहतर सिद्ध होंगे।

सिर्फ संगीत सोम के साथ अन्याय हुआ, उन्हें दो सप्ताह बाद अगले विस्तार में सम्मानजनक स्थान अवश्य मिलेगा,
बाकि योगी मन्त्रीमण्डल संतुलित और शानदार है।सभी वर्गों को समुचित स्थान मिला है।
गूजरों को मन्त्रीमण्डल में स्थान नही मिला इसके पीछे यूपी के सबसे ताकतवर गूजर नेता का हाथ है क्योंकि गूजर कोटे से वो अपनी बेटी को कुछ दिन बाद एमएलसी बनवाकर मंत्री बनवाना चाहते हैं इसलिए अब किसी और को बनने नही दिया।

योगी जी संत हैं, उनका समाज सर्वसमाज है , हमे उनसे जातिवादी शासन या वर्चस्व नही एकदम निष्पक्ष शासन की उम्मीद है और हमारी उम्मीद पूरी होगी
उनके मन्त्रीमण्डल को लेकर जातिगत दुष्प्रचार बन्द हो।

सामाजिक आधार पर संतुलित रहा योगी मंत्रीमंडल, पर संगीत सोम के साथ घोर अन्याय हुआ

कैबिनेट मंत्री---

1--जयप्रताप सिंह डुमरियागंज जिले की बांसी सीट से विधायक
2--चेतन चौहान अमरोहा जिले को नोगाँव सादात सीट से विधायक
3--राजेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ़ मोती सिंह प्रतापगढ़ जिले की पट्टी सीट से विधायक

राज्यमंत्री स्वतन्त्र प्रभार
4--सुरेश राणा शामली की थानाभवन सीट से विधायक
5--स्वाति सिंह लखनऊ की सरोजनीनगर सीट से विधायक
6--डॉक्टर महेंद्र सिंह विधान परिषद सदस्य

राज्यमंत्री
7---रणवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ़ धुन्नी सिंह फतेहपुर जिले की हुसैनगंज सीट से

सिर्फ 7 मंत्री राजपूत बने, जिनमे मात्र 3 कैबिनेट मंत्री बने,
अखिलेश सरकार में 10 कैबिनेट मंत्री और 2 राज्यमंत्री राजपूत थे
बसपा सरकार में 4 कैबिनेट मंत्री और 6 राज्यमंत्री राजपूत थे।
कल्याण सिंह सरकार में 16 मंत्री राजपूत थे
मुलायम सरकार में 21 मंत्री राजपूत थे

गत 40 वर्षों में सबसे कम राजपूत मंत्री इस बार बनाए गए,

उप मुख्यमंत्री समेत 17 OBC, 6 SC, 7 क्षत्रिय ,8 ब्राह्मण, 8 कायस्थ-वैश्य-खत्री, 2 जाट और 1 शिया मुस्लिम ,1 सिक्ख जाट की UP मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी है।
गूजर ,त्यागी शून्य रह गए।

यही नही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय हिन्दू शेर संगीत सोम का नाम कैबिनेट मंत्री पद से देश के सबसे बड़े राजपूत नेता ने दबाव डालकर कटवाया!!!!!!!!!!!
बेहद शर्मनाक

यही नही उस बड़े कद के तथाकथित महान राजपूत नेता ने अपनी छवि चमकाने के चक्कर में अपने पुत्र का नाम भी मंत्रीमंडल से कटवा दिया!!!!
पश्चिम उत्तर प्रदेश मेरठ सहारनपुर मंडल से एक भी कैबिनेट मंत्री नही बनाया गया!!!!

सुरेश राणा जी को भी मात्र राज्यमंत्री (स्वतन्त्र प्रभार) बनाया गया !!!!

योगी जी को अगले विस्तार में शीघ्र संगीत सोम को कैबिनेट में जगह देनी चाहिए, और सुरेश राणा जी को प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया जाए।
अभी संगीत सोम के साथ बड़ा अन्याय किया गया है।

हिन्दू हृदय सम्राट योगी आदित्यनाथ जी मुख्यमंत्री बने हमारे लिए यही पर्याप्त है।मंत्री चाहे कम बने हों कोई दिक्कत नही।
बस संगीत सोम के साथ अन्याय हुआ जो अगले मन्त्रीमण्डल विस्तार में सुधार होना चाहिए।

सपा बसपा सरकारों में राजपूत मंत्रियो को मामूली अहीर या दलित मुस्लिम डीएम एसपी हड़का तक देते थे सिर्फ अहीर दलित और मुस्लिम नेताओं की चलती थी।

आदरणीय सुरेश राणा जी को राज्यमंत्री (स्वतन्त्र प्रभार) बनाए जाने पर  और सभी मंत्रियों को शपथ लेने पर हार्दिक बधाई।

Saturday, March 18, 2017

मोदी-अमित शाह ने उत्तर प्रदेश के 2 करोड़ राजपूतों को ठेंगा दिखाया!!!, आक्रोश की लहर

मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने राजपूतो के साथ छल किया----

मोदीभक्त न होते हुए भी मैंने अपने साथियों के साथ मिलकर पिछले 6-7 माह से उत्तर प्रदेश में बीजेपी का समर्थन किया, इसके कुछ कारण हैं।

1--क्योंकि राजपूत स्वभाव से राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी होता है इसलिए बीजेपी हम सबकी स्वाभाविक पसन्द बनी,
भले ही बीजेपी का हिंदुत्व किसी जुमले से अधिक न हो,पर आप सबके साथ मेरा भी बीजेपी को हमेशा से समर्थन करने का प्रमुख कारण राष्ट्रवाद और हिंदुत्व रहा।

2--विशाल जनसंख्या होने के बावजूद राजपूत समाज पिछले 70 वर्षों से उत्तर प्रदेश की शीर्ष सत्ता से दूर रहा है , सत्ता सुख से हम सदैव वंचित रहे हैं,बीच में कोई राजपूत मुख्यमंत्री बना भी तो उसे टिकने नही दिया गया!!
प्रारम्भ में ब्राह्मण और बाद के दिनों में अहीर/दलित/मुस्लिम उत्तर प्रदेश के शासक वर्ग रहे और हम मंत्री-संत्री बनकर इनकी चाकरी ही करते रहे,

सपा बसपा और उनके समर्थक वर्ग क्षत्रियों के स्वभाविक  शत्रु हैं उन्होंने क्षत्रियों को सूबेदारी तो दी पर सम्मान नही मिला, सपा बसपा और उनकी सरकारों में अहिरो दलितों मुस्लिमो का वर्चस्व भी हम सबका बीजेपी को समर्थन के लिए प्रमुख कारक रहा।

3--सपा बसपा सरकारों में भी हमें मंत्री संत्री पद खूब मिले ,पर मान सम्मान नही मिला,
वहां कभी हमे शीर्ष सत्ता (मुख्यमंत्री पद) मिलना सम्भव नही था जो उत्तर प्रदेश में हमारे लिए प्राणवायु की भांति बेहद जरूरी है

वर्षों से शीर्ष सत्ता से अलग थलग रखे गए राजपूत समाज ने योगी आदित्यनाथ/राजनाथ सिंह की सीएम उम्मीदवारी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी को जबरदस्त और एकतरफा समर्थन दिया।

आप आंकड़ो में स्वयं देखिये ,उत्तर प्रदेश में बीजेपी को सर्वाधिक समर्थन क्षत्रिय समाज ने किया,
बीजेपी को मिले 40% कुल मतों में एक तिहाई समर्थन सिर्फ राजपूतो के दम पर मिला,
राजपूत समर्थन न देते तो कितनी भी बड़ी लहर होती बीजेपी 25% पर सिमट जाती!!

बीजेपी के विजयी विधायको में सर्वाधिक संख्या 56 राजपूतो की ही है,राजपूतो ने बीजेपी के चक्कर में दूसरे दलों से खड़े दर्जन भर मजबूत राजपूत उम्मीदवारों को हरवा दिया नही तो यूपी विधानसभा में राजपूत विधायको की संख्या 80 के पार होती।

आज मोदी अमित शाह की जोड़ी ने उत्तर प्रदेश की जीत में राजपूतों का योगदान पूरी तरह से नकार दिया है तो ऐसा लग रहा है मानो इतने दिन से हम दूसरों के खेत में हल चला रहे थे,
हमारा तो कुछ था ही नही जिसके लिए हम लड़ रहे थे!!!!

दशकों से शीर्ष सत्ता की बाट जोह रहे क्षत्रिय समाज के साथ मोदी जी ने छल किया है और हमारी भावनाओं का दोहन कर हमे नींबू की तरह रस निचोड़कर कूड़ेदान में फेक दिया है ऐसा प्रतीत होता है।

इस धोखे का प्रतिकार अवश्य होगा, समय आने पर
👊👊
राजपूतो का चरित्र है कि हम दुश्मनी नही भूलते, चाहे बदला लेने का मौका लम्बे समय बाद ही मिले।

हम बीजेपी की हवा बना सकते हे तो हवा निकाल भी सकते हे ।
हर बार हम अपने अरमानो की हत्या करके मन मसोस कर बैठ जाते हे ,
अब इससे ज्यादा सहा नही जाता भाड़ में जाए ऐसा राष्टवाद जिसकी बलि का बकरा हर बार राजपूत बने...😬😬

मोदी-अमित शाह की जोड़ी का दिया घाव सीने में बहुत अंदर तक असर कर गया है,
घाव दिया है तो लहू भी टपकेगा
याद रखना मोदी जी, क्षत्रिय का लहू असर जरूर दिखाएगा।

हर हर महादेव

Monday, March 13, 2017

शीर्ष सत्ता (मुख्यमंत्री पद) के अभाव में मात्र सूबेदारी तक सिमित रहा यूपी का क्षत्रिय समाज----


स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत उत्तर प्रदेश में बने मुख्यमंत्रियों का विवरण-----

1--गोविन्द वल्लभ पन्त (ब्राह्मण) 8 वर्ष
2--बाबु सम्पूर्णानन्द (कायस्थ) 3 वर्ष
3--चन्द्रभानु गुप्ता(वैश्य) 4 वर्ष
4--सुचेता कृपलानी (ब्राह्मण) 4 वर्ष
5--चौधरी चरण सिंह (जाट) 2 वर्ष
6--त्रिभुवन नारायण सिंह(राजपूत) 7 महीना
7--कमलापति त्रिपाठी(ब्राह्मण) 2 वर्ष
8--हेमवती नन्दन बहुगुणा (ब्राह्मण)2 वर्ष
9--नारायण दत्त तिवारी(ब्राह्मण)4 वर्ष
10--रामनरेश यादव (अहीर) 2 वर्ष
11--बनारसी दासगुप्त (वैश्य) 1 वर्ष
12--वीपी सिंह (राजपूत) 1 वर्ष 10 माह
13--श्रीपति मिश्र (ब्राह्मण) 2 वर्ष
14--वीर बहादुर सिंह (राजपूत) 3 वर्ष
15--मुलायम सिंह यादव (अहीर) 7 वर्ष
16--कल्याण सिंह (लोधी ओबीसी) 4 वर्ष
17--मायावती (दलित ) 8 वर्ष
18--रामप्रकाश गुप्ता (वैश्य) 1 वर्ष
19--राजनाथ सिंह (राजपूत) 1 वर्ष 5 महीना
20--अखिलेश यादव (अहीर)5 वर्ष

ब्राह्मण (जनसंख्या 11%)---

कुल 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री 22 वर्ष यूपी में मुख्यमंत्री रहे।।इनके कार्यकालों में अधिकतर सरकारी नोकरियों और शासन प्रशासन में ब्राह्मणों का बोलबाला रहा।

अहीर(जनसंख्या 9%)---

कुल 3 अहीर मुख्यमंत्री 12 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे।
मुलायम सिंह यादव और अखिलेश के कार्यकाल में हर सरकारी भर्ती में अहीरों को जमकर प्राथमिकता मिली, कई लाख अहीरों को सरकारी सेवाओं में भर दिया,हर मलाईदार पदों पर अहीर बिठा दिए,
सरकारी ठेको, खनन आदि में अहीरों का ही बोलबाला रहा।
इन 12 वर्षों में अहीरों का सर्वांगीण विकास हुआ और वो यूपी में सर्वोच्च स्थिति में पहुंच गए
मुस्लिम और राजपूत इनके छोटे मोटे सूबेदार मात्र बनकर रह गए।

वैश्य(जनसंख्या 3%)---
कुल 3 वैश्य 6 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे

जाटव दलित (जनसंख्या 13%)----

अकेले मायावती 8 वर्ष तक यूपी की मुख्यमंत्री रही ,इन 8 वर्षों में मायावती ने अपनी जाति जाटव को सबल बना दिया, इनका कार्यकाल दलितों के वर्चस्व और स्वर्णो की गुलामी का कार्यकाल था जिसमे सर्वाधिक उत्पीड़न राजपूतों का हुआ था।

क्षत्रिय (जनसंख्या 15% )---

यूपी क्षत्रिय बाहुल्य प्रदेश है यहाँ 10% मुख्यधारा के राजपूत और 5% राजपूतो से सम्बंधित अलग अलग समाज यूपी में बिखरे हुए हैं जो राजपूतो के साथ ही मिलकर वोटिंग करते हैं
पर यूपी की सबसे बड़ी जाति क्षत्रिय 15% जनसंख्या के बावजूद शीर्ष सत्ता से वंचित रही है।
कुल 4 राजपूत बेचारे मात्र 6 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे, वो भी टुकड़ों के कार्यकाल में, इनमे भी वीरबहादुर सिंह के 3 वर्ष और राजनाथ सिंह के डेढ़ वर्ष ही क्षत्रिय समाज को सत्ता सुख मिल पाया।

लोधी(जनसंख्या 3%)--
अकेले कल्याण सिंह 4 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे,एक समय बेहद पिछड़ी हुई लोधी जाति कल्याण के कार्यकाल में उभर गयी।

कायस्थ(जनसंख्या 1%)----
बाबु सम्पूर्णानन्द 3 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे।

जाट (जनसंख्या 1.7%)----

जाट समाज से चौधरी चरण सिंह 2 बार में 2 वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री रहे।चौधरी चरण खुद सीएम रहे या उनके समर्थन से कोई अन्य बना ,
उन्होंने छोटे से कार्यकाल में जाटों को पुलिस, पीएसी, कृषि विभाग और अन्य सरकारी नोकरियों में भर दिया जिसका लाभ जाट समाज अब तक उठा रहा है।

उत्तर प्रदेश और बिहार में पिछले 70 वर्षों में सभी राजनैतिक दलों ने राजपूत समाज के साथ छल किया है,
हमे सिर्फ सूबेदारी मिली, सर्वोच्च सत्ता कभी कभार मिली, वो भी टुकड़ों के कार्यकाल में जिसका कोई महत्व नही।

सर्वोच्च सत्ता जिन समाजो को मिली उन्होंने अपना भरपूर विकास किया,वहीँ राजपूत समाज मात्र टुच्ची सूबेदारी (मंत्री/संत्री/विधायक/सांसद पद)ही प्राप्त कर पाया!!!

सर्वोच्च सत्ता के अभाव् में और सत्तासीन लोगो की उपेक्षा के चलते यूपी और बिहार का राजपूत समाज बुरी तरह पिछड़ चुका है।

इस बार यूपी में सबसे ज्यादा दिलोजान से किसी समाज ने बीजेपी को एकजुट होकर मतदान किया है तो वो राजपूत समाज है जिसने न सिर्फ अपना वोट दिया बल्कि बच्चे बच्चे ने बीजेपी का कार्यकर्ता बनकर अन्य समाज के भी वोट दिलवाए,

नरेंद्र मोदी जी के बाद यूपी में बीजेपी की हवा बनाने में सबसे बड़ा योगदान योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह की जनसभाओं का है,
आज जब बीजेपी सत्ता में आती दिख रही है तो मुख्यमंत्री पद के लिए कुछ लोग योगी जी और राजनाथ का नाम एकदम ख़ारिज करते हुए किसी सुनील बंसल, रामलाल, श्रीकांत शर्मा,मनोज सिन्हा, सिद्धार्थनाथ, स्मृति ईरानी, सतीश महाना, सुरेश खन्ना आदि का उल्लेख कर रहे हैं

कौन हैं ये लोग????
ये इतने ही काबिल थे तो योगी जी और राजनाथ को पूरे प्रदेश में धक्के खिलाने की बजाय इनकी जनसभाएं क्यों नही करवाई गयी???

योगी और राजनाथ बेचारे जाति से राजपूत हैं इसलिए इनका योगदान नकारना कुछ कथित राष्ट्रवादियो के लिए बड़ा आसान है !!!!

मुझे ऐसा लग रहा है कि निस्वार्थ भाव से राष्ट्रवादी भावना से ओतप्रोत होकर वोट करने वाले हमारे राजपूत समाज के साथ फिर से धोखा जरूर होगा।

ऐसा हुआ तो 2019 अधिक दूर नही है, लोकसभा चुनाव से पहले सपा, कांग्रेस, बसपा, रालोद में गठबंधन होगा जिनका कुल मत प्रतिशत 52% तक पहुंच जाएगा।और बीजेपी 40% पर सिमित रह जाएगी।

तब वो होगा जो आज असम्भव लगता है ,बिहार की तरह ही यूपी में भी यही हाल होगा।

सर्वश्रेष्ठ प्रशासनिक क्षमता देखी जाए तो राजनाथ सिंह सर्वश्रेष्ठ हैं
वहीँ जनभावनाएं या राष्ट्रवादी एजेंडा लागु करने की बात करें तो योगी आदित्यनाथ को सर्वहिन्दु समाज का समर्थन हासिल है।

जनभावनाओं का अपमान हुआ तो 2019 अधिक दूर नही हैं, तब हो सकता है हम भी बदली हुई भूमिका में दिखाई दें।

योगी जी हम सबकी प्राथमिकता हैं, पर उनकी कट्टर छवि को देखते हुए मोदी अमित शाह उन्हें सीएम नही बनाते हैं तो सर्वश्रेष्ठ प्रशासक राजनाथ सिंह को यूपी का सीएम बनाया जाए,
राजनाथ सिंह इसके लिए इंकार करते हैं तो ये यूपी के दो करोड़ क्षत्रियों के साथ बड़ा विश्वासघात होगा और क्षत्रिय समाज को यह मौका दोबारा नही मिलेगा।

Saturday, March 11, 2017

वर्ष 2017 में निर्वाचित उत्तराखण्ड और पंजाब के क्षत्रिय विधायकों की सूचि

उत्तराखण्ड के विजयी क्षत्रिय विधायकों की सूचि।

क्रमांक विधानसभा पार्टी विजयी प्रत्याशी
1 यमुनोत्री भाजपा श्री केदार सिंह रावत
2 गंगोत्री भाजपा श्री गोपाल सिंह रावत
3 कर्णप्रयाग भाजपा श्री सुरेन्द्र सिंह नेगी
4 केदारनाथ कांग्रेस श्री मनोज रावत
5 देवप्रयाग भाजपा श्री विनोद कण्डारी
6 प्रतापनगर भाजपा श्री विजय सिंह पंवार
7 टिहरी भाजपा श्री धन सिंह नेगी
8 धनौल्टी निर्दलीय श्री प्रीतम सिंह पंवार
9 चकराता कांग्रेस श्री प्रीतम सिंह
10 विकासनगर भाजपा श्री मुन्ना सिंह चौहान
11 सहसपुर भाजपा श्री सहदेव सिंह पुंडीर
12 डोईवाला भाजपा श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत
13 रानीपुर भाजपा श्री आदेश चौहान
14 श्रीनगर भाजपा डॉ धनसिंह रावत
15 चौब्बटाखाल भाजपा श्री सतपाल महाराज
16 लैंसडॉन भाजपा श्री दिलीप सिंह रावत
17  कोटद्वार भाजपा श्री हरक सिंह रावत
18 धारचूला कांग्रेस श्री हरीश सिंह
19डीडीहाट  भाजपा श्री बिशन सिंह
20 द्वाराहाट भाजपा श्री  महेश नेगी
21 अल्मोड़ा भाजपा श्री रघुनाथ सिंह चौहान
22 लोहाघाट से बीजेपी के पूरन सिंह फर्त्याल
23 भीमताल निर्दलीय श्री राम सिंह(?)
24 रामनगर भाजपा श्री दीवान सिंह बिष्ट
25 जसपुर कांग्रेस श्री आदेश सिंह चौहान
26 खटीमा से पुष्कर धामी।।
27अल्मोड़ा की सल्ट सीट से सुरेन्द्र सिंह जीना

पंजाब के क्षत्रिय विधायको की सूचि

1--पठानकोट की सुजानपुर से ठाकुर दिनेश सिंह बब्बू बीजेपी
2--आनन्दपुर साहिब से राणा केपी सिंह जी कांग्रेस (मंत्री बनेंगे)

संकलनकर्ता--रॉबिन पुण्डीर,डॉक्टर नितीश सिंह सूर्यवंशी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में निर्वाचित क्षत्रिय विधायकों की सूचि


उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय विधायकों की संख्या---

धीर सिंह पुण्डीर और पुष्पेन्द्र राणा द्वारा संकलित---

A---पश्चिमी उत्तर प्रदेश

सहारनपुर--
1--देवबन्द सीट से कुँवर बृजेश सिंह बीजेपी

शामली--
2--थानाभवन सीट से सुरेश राणा बीजेपी

मेरठ
3--सरधना सीट से संगीत सोम बीजेपी

गौतमबुद्धनगर
4--जेवर सीट से ठाकुर धीरेन्द्र सिंह बीजेपी
5--नॉएडा सीट से पंकज सिंह बीजेपी

बुलन्दशहर
6--सिकन्द्राबाद से विमला सोलंकी बीजेपी

अलीगढ़
7--बरौली से ठाकुर दलवीर सिंह बीजेपी
8--छर्रा सीट से रविंद्रपाल सिंह जादौन बीजेपी

मुजफ्फरनगर शून्य
बागपत शून्य

मथुरा--
9--गोवर्धन सीट से ठाकुर कारिंदा सिंह बीजेपी

आगरा--
10--बाह से रानी पक्षालिका सिंह बीजेपी
11--एत्मादपुर से रामप्रताप सिंह चौहान बीजेपी

हाथरस--
12--सिकन्दराराऊ सीट से वीरेंद्र सिंह राणा बीजेपी

इटावा---
13--इटावा सदर सीट से सरिता भदौरिया बीजेपी

एटा---
14--अलीगंज सीट से सत्यपाल सिंह राठौड़ बीजेपी

फर्रुखाबाद---
15--भोजपुर सीट से नागेंद्र सिंह राठौड़ बीजेपी

मैनपुरी शून्य
कासगंज शून्य

बिजनौर--
16--धामपुर सीट से अशोक राणा बीजेपी
17--नूरपुर सीट से लोकेन्द्र चौहान बीजेपी
18--बढ़ापुर सीट से सुशांत सिंह बीजेपी

अमरोहा--
19--नोगांवा सादात से चेतन चौहान

शाहजहाँपुर--
20--ददरौल से मानवेन्द्र सिंह बीजेपी
21--कटरा सीट से वीर विक्रम सिंह बीजेपी
21--जलालाबाद सीट से शरदवीर सिंह सपा

बदायूं--
22--दातागंज सीट से राजीव कुमार सिंह

मुरादाबाद शून्य
बरेली शून्य
कन्नौज शून्य
पीलीभीत शून्य
रामपुर शून्य
सम्भल शून्य

इस प्रकार पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुल 23 क्षत्रिय राजपूत विधायक जीते, पिछली बार इस क्षेत्र से 15 राजपूत विधायक थे।

B--बुन्देलखण्ड क्षेत्र में---

हमीरपुर--
23--हमीरपुर से अशोक चन्देल बीजेपी

जालौन--
25--कालपी सीट से कुंवर नरेंद्रपाल सिंह जादौन बीजेपी

चित्रकूट शून्य
बांदा शून्य
ललितपुर शून्य
महोबा शून्य

बुन्देलखण्ड क्षेत्र के 7 जिलो में मात्र 2 राजपूत विधायक जीत पाए, निराशाजनक रहा।।

C--अवध क्षेत्र में----

लखीमपुर खीरी---
26--लोकेन्द्र प्रताप सिंह बीजेपी

लखनऊ--
27--सरोजनीनगर सीट से स्वाति सिंह बीजेपी

उन्नाव--
28--बांगरमऊ सीट से कुलदीप सेंगर बीजेपी
28--पुरवा सीट से अनिल सिंह बसपा

गोंडा--
29--गोंडा सदर सीट से प्रतीक भूषण सिंह बीजेपी
30--करनैलगंज सीट से अजय प्रताप सिंह उर्फ़ लल्ला भैय्या बीजेपी
31--कटरा बाजार सीट से बावन सिंह बीजेपी

बलरामपुर--
32--गैसण्डी सीट से शैलेश कुमार सिंह बीजेपी

फतेहपुर---
33--फतेहपुर सदर सीट से विक्रम सिंह बीजेपी
34--हुसैनगंज सीट से रणवेंद्र प्रताप सिंह बीजेपी

कानपुर---
35--बिठूर सीट से अभिजीत सांगा बीजेपी

हरदोई---
36--सवायजपुर सीट से कुंवर मानवेन्द्र प्रताप सिंह बीजेपी

रायबरेली---
37--रायबरेली सदर सीट से अदिति सिंह कांग्रेस
38--हरचन्दपुर सीट से राकेश सिंह कांग्रेस
39--सरेनी सीट से धीरेन्द्र बहादुर सिंह बीजेपी

अमेठी---
40--अमेठी सदर सीट से रानी गरिमा सिंह बीजेपी
41--तिलोई सीट से कुंवर मयंकेश्वर शरण सिंह बीजेपी
42--गौरीगंज सीट से राकेश प्रताप सिंह सपा

फ़ैजाबाद---
43--बीकापुर सीट से शोभा चौहान बीजेपी

सुल्तानपुर---
44--सुल्तानपुर सदर सीट से सूर्यभान सिंह बीजेपी

प्रतापगढ़---
45--कुंडा सीट से रघुराज प्रताप सिंह "राजा भैया" निर्दलीय
46--पट्टी सीट से राजेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ़ मोती सिंह बीजेपी

बहराइच---
47--महसी सीट से सुरेश्वर सिंह बीजेपी

इस प्रकार अवध क्षेत्र में कुल 23 राजपूत विधायक जीते हैं, जो संतोषजनक है।

D---पूर्वांचल क्षेत्र से

गोरखपुर---
48--गोरखपुर ग्रामीण सीट से विपिन सिंह बीजेपी
49--कैम्पियरगंज सीट से फतेह बहादुर सिंह बीजेपी

डुमरियागंज---
50--बांसी से जयप्रताप सिंह बीजेपी
51--डुमरियागंज सीट से राघवेंद्र प्रताप सिंह बीजेपी

बस्ती--
52--हरैया सीट से अजयसिंह बीजेपी

महाराजगंज----
53--फरेन्दा सीट से बजरंग बहादुर सिंह बीजेपी

संतकबीरनगर----
54--मेहन्दावल सीट से राकेश सिंह बघेल बीजेपी

आजमगढ़---
55--सगड़ी सीट से वन्दना सिंह बसपा

जौनपुर---
56--जाफराबाद सीट से हरेन्द्र प्रताप सिंह बीजेपी

ग़ाज़ीपुर---
58--जमानिया सीट से सुनीता सिंह बीजेपी

चंदौली---
59--सैयदराजा सीट से सुशील सिंह बीजेपी
60--मुगलसराय सीट से साधना सिंह बीजेपी

बलिया---
61--रसड़ा सीट से उमाशंकर सिंह बसपा
62--बैरिया सीट से सुरेन्द्र सिंह बीजेपी

मिर्जापुर---शून्य
भदोई--शून्य
सोनभद्र---शून्य
मऊ---शून्य
वाराणसी--शून्य

इस प्रकार पूर्वांचल जहाँ क्षत्रियो की भारी संख्या है वहां मात्र 14 राजपूत विधायक जीत पाए जबकि यहाँ से 30 विधायक आराम से जीत सकते थे,
यही नही आजमगढ़ जिले में बीजेपी ने बड़ा खराब प्रदर्शन किया।

इस प्रकार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में कुल 403 विधानसभा सीटों में 62 राजपूत विधायक चुने गए,  जो बहुत अधिक नही हैं ,
यूपी में 1980 में 108 राजपूत विधायक चुने गए थे और 2007 से पहले भी 75-80 तक राजपूत विधायक चुने जाते रहे हैं।।।

2007 में मात्र 43 और 2012 में 48 राजपूत विधायक चुने गए थे।

इस बार चुने गए 62 राजपूत विधायको में 02 कांग्रेस, 03 बसपा, 02 सपा, 01 निर्दलीय और 54 राजपूत बीजेपी से जीतकर आए हैं।

इस प्रकार उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक संख्या में राजपूत विधायक जीत कर आए हैं, और बीजेपी में भी सबसे ज्यादा संख्या राजपूत समाज के विधायको की है।
दूसरे स्थान पर ब्राह्मण समाज के विधायक होंगे।क्षत्रियों ने एकजुट होकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी को जमकर समर्थन किया और ब्राह्मणों वैश्य अतिपिछड़ों को भी बीजेपी के समर्थन के लिए प्रेरित किया।

बहरहाल राष्ट्रवाद की विजय हुई, सर्वसमाज ने एकजुट होकर राष्ट्रवाद के नाम पर वोट दिया। अब मोदी जी मुख्यमंत्री पद पर किसे चुनेंगे इसपर नजर है।

सर्वश्रेष्ठ प्रशासक चुने तो राजनाथ सिंह जी का कोई मुकाबला नही

सबसे लोकप्रिय हिंदुत्ववादी नेता चुने तो योगी आदित्यनाथ जी सबसे आगे

दिनेश शर्मा जी की छवि भी अच्छी है और केशव प्रसाद ने भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अच्छा काम किया है।

पर जनभावनाएं को पढ़ा जाए तो योगी जी मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होंगे।

लेखक और संकलनकर्ता--धीर सिंह पुण्डीर और पुष्पेन्द्र राणा 

Wednesday, March 8, 2017

यूपी में बीजेपी को बहुमत मिलेगा, विजय का महानायक कौन???

बीजेपी को बहुमत मिलेगा, विजय नायक कौन??---

यूपी विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही भृष्ट मीडिया द्वारा अखिलेश सरकार की वापसी का माहौल बनाया गया, ऐसा लगा मानो बीजेपी का वनवास और लम्बा होगा तथा लगातार दूसरा चुनाव जीतकर अखिलेश राष्ट्रीय नेता बन जाएगे,किन्तु जनता के मन में कुछ और ही चल रहा था,

यूपी में पहले चरण में बीजेपी हार के कगार पर थी----
तीन सबसे बड़े सामाजिक वर्ग मुस्लिम दलित और जाट यहाँ बीजेपी को हराने को कटिबद्ध थे,
अमित शाह की सभी सभाएं विफल हो रही थी और जाटों को बीजेपी के पक्ष में लाने के उनके सभी प्रयास व्यर्थ हो गए थे।।

ऐसे में बीजेपी ने मजबूर होकर योगी आदित्यनाथ को आगे किया जिन्होंने बिना संकोच के आक्रामक शैली में प्रचार किया जिसकी बदौलत गैर जाट/जाटव हिन्दू मत (कुल मतों का 48%) बीजेपी के पक्ष में एकजुट हो गए, राजनाथ सिंह की सभाओं ने भी दर्जनों सीटों पर बीजेपी को संजीवनी दी।

योगी जी और राजनाथ सिंह ही बीजेपी की ओर से प्रथम चरण के सबसे मुश्किल क्षेत्र में स्टार प्रचारक रहे और बीजेपी इस कठिन क्षेत्र से न सिर्फ सुरक्षित निकल गयी बल्कि सबसे आगे रही।

योगी आदित्यनाथ द्वारा बनाई गयी हिन्दू लहर द्वितीय चरण में रुहेलखण्ड के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में और जोर से चली, मुस्लिम वोट सपा बसपा में बंट गया और हिन्दू मतदाता बीजेपी के पक्ष में प्रथम चरण से भी अधिक एकजुट रहे, जिससे दूसरे चरण में बीजेपी बहुत आगे निकल गयी ।

प्रथम दोनों चरण में बीजेपी की बढ़त के समाचार जैसे ही फैलने लगे, बीजेपी का आत्मविश्वास बढ़ता चला गया।

अब तृतीय चरण में इटावा मैनपुरी के अहीर बाहुल्य क्षेत्र और अवध के इलाके में मतदान हुआ, यहाँ अहीरों द्वारा गत पांच वर्षो में जो एकाधिकार और वर्चस्व जमाया हुआ था उसके विरुद्ध गैर अहीर हिन्दू मतदाताओं का बीजेपी के पक्ष में जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ और बीजेपी लगातार तीसरे चरण में सबसे आगे रही।

अब बीजेपी को सत्ता पास दिखाई देने लगी, मोदी जी भी रंग में आ गए,और सपा सुप्रीमो अखिलेश को भी हार के संकेत साफ़ दिखाई देने लगे,झुंझलाहट उनके भाषणों में साफ़ दिखाई देने लगी।पहले तीन चरण में पर्याप्त संख्या में मुस्लिमो को टिकट देने के बावजूद मुस्लिम का रुझाम सपा की ओर रहने से बसपा की हालत एकदम खराब हो गयी।

चौथे चरण में बुन्देलखण्ड और इलाहाबाद के आसपास के जनपदों में मतदान हुआ, यहाँ मुस्लिम वोट कम थे
बुन्देलखण्ड में गैर अहीर ओबीसी और स्वर्ण बीजेपी के पक्ष में एकजुट हुए जिससे बुन्देलखण्ड में बीजेपी का पलड़ा भारी रहा और बाकि जगह सपा कांग्रेस गठबंधन का बीजेपी से मुकाबला रहा।

चोथे चरण के मतदान के बाद बीजेपी की स्पष्ट बढ़त साफ़ दिखाई देने लगी, और यहाँ से सपा ने रणनीति बदली, स्वर्णो में पारस्परिक प्रतिद्वन्दिता का लाभ उठाने के लिए योगी और राजनाथ सिंह के नाम से ब्राह्मणों को भड़काया जाने लगा, इस रणनीति का कुछ लाभ पांचवे चरण में अवध क्षेत्र में विपक्ष को मिला और पहले चार चरण से सरपट भाग रही बीजेपी की बढ़त को थोडा ब्रेक मिला,
स्वर्णो की आपसी फुट से पांचवे चरण में सपा गठबंधन और बीजेपी में लगभग बराबरी का मुकाबला हुआ।

यहाँ से बीजेपी और संघ के एक वर्ग ने बीजेपी को बहुमत से पहले ही 150 सीट तक रोकने की रणनीति अपनाई और सपा बसपा के साथ मिलकर जातिवाद का जहर फैलाने का प्रयास हुआ,
इनकी रणनीति थी कि छठे चरण में योगी आदित्यनाथ के प्रभाव वाले इलाके में बीजेपी खराब प्रदर्शन करेगी तो योगी की सीएम दावेदारी खत्म हो जाएगी और बहुमत न मिलने की स्थिति में मायावती को बीजेपी का समर्थन दिलवाकर मुख्यमंत्री बनवा दिया जाए,

किन्तु अब मोदी जी ने मोर्चा सम्भाला ,मोदी और योगी के आक्रामक प्रचार से विपक्ष धराशायी हो गया,
मुस्लिम मत इस चरण में बसपा की ओर शिफ्ट हो गया जिससे आजमगढ़ बलिया में बीजेपी का मुकाबला बसपा से हुआ,
सपा इस चरण में लगभग सफा हो गयी।

सातवे चरण से पहले ही बीजेपी बहुमत के नजदीक पहुंच चुकी थी, अब मोदी जी ने लगातार 3 दिन बनारस में प्रचार करके अंतिम चरण में बीजेपी की लहर को सुनामी में बदल दिया,

विपक्ष ने अंतिम दो चरण में ब्राह्मणों को योगी और राजनाथ के नाम से बहकाकर स्वर्णो में फूट डालने का प्रयास किया किन्तु सफल नही हुए,
अंतिम दो चरण में बीजेपी ने पूर्वांचल में विपक्ष का लगभग सफाया कर दिया।।

कुल मिलाकर बीजेपी यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है।

बीजेपी की शानदार विजय के महानायक ये रहे---

1--प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी (जिनका जलवा कायम है)
2--योगी आदित्यनाथ (आक्रामक हिंदुत्ववादी प्रचार)
3--राजनाथ सिंह (सर्वश्रेष्ठ वक्ता)
4--अमित शाह (शानदार रणनीति)
5--ओम माथुर (अमित शाह के सहायक)
6--केशव प्रसाद मौर्य(अतिपिछड़ों में इनके कारण प्रदेशव्यापी सन्देश)

क्षेत्रीय स्तर पर संगीत सोम, सुरेश राणा, ओमप्रकाश राजभर, मनोज तिवारी, मनोज सिन्हा,अनुप्रिया पटेल,उमा भारती सुनील बंसल आदि भी उपयोगी सिद्ध हुए।

अब देखना ये है कि यूपी में बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री किसे बनाया जाता है।।

सर्वश्रेष्ठ प्रशासक के रूप में राजनाथ सिंह सबसे आगे हैं वहीँ लोकप्रियता की कसौटी पर योगी आदित्यनाथ सबसे आगे हैं

अतिपिछड़ों में केशव मौर्य का दावा मजबूत है ब्राह्मणों में दिनेश शर्मा और महेन्द्रनाथ पाण्डेय की छवि सबसे बेहतर है

जनभावनाओं का सम्मान मोदी जी करना चाहें तो योगी जी सीएम पद हेतु सर्वश्रेष्ठ नेता हैं अगर हरियाणा की तरह ही मोदी जी किसी रबर स्टाम्प मुख्यमंत्री को चाहते हों तो दर्जनों छुटभैये नेता इस पद की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं जिनका प्रचार में कोई योगदान नही है ।।

जनभावनाओं का अपमान किया गया तो 2019 अधिक दूर नही है।

Monday, March 6, 2017

शीर्ष सत्ता (मुख्यमंत्री पद) के अभाव में बिहार में उपेक्षित ही रहा राजपूत समाज

बिहार में 7% जनसंख्या वाला राजपूत समाज स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शीर्ष सत्ता से सैदेव वंचित रहा----

दीपनारायण सिंह --17 दिन
हरिहर सिंह--4 महीना
चन्द्रशेखर सिंह --7 महीना
सत्येंद्र नारायण सिंह--9 महीना

कुल 04 राजपूत मुख्यमंत्री टुकड़ों में महज 20 महीना राज कर पाए ,
70 वर्षों में कुल 2 वर्ष से भी कम राजपूत सीएम रहे,
शीर्ष सत्ता के आभाव में राजपूत समाज निरन्तर पिछड़ता चला गया और राजपूतों से द्वेषभाव रखने वाले अहीर, भूमिहार,कुर्मी आदि वर्गों के सत्ताधारियों ने भी राजपूत समाज को हर स्तर पर सताने में कोई कसर नही छोड़ी।

बिहार में कुल 3% जनसंख्या वाले भूमिहार समाज ने प्रारम्भ में ही लगातार 17 वर्ष बिहार पर राज किया,
बिहार में कांग्रेस द्वारा प्रथम मुख्यमंत्री पद के लिए बाबू अनुग्रह नारायण सिंह (राजपूत) की बजाय भूमिहार श्रीकृष्ण सिंह का चयन किया और श्रीकृष्ण सिंह लगातार 16 वर्ष बिहार के सीएम रहे, इन 16 वर्षों में भी सरकारी सहयोग से भूमिहार समाज ने निर्णायक बढ़त ली और अधिकांश सरकारी पदों पर कब्जा जमा लिया।।

बिहार में मात्र 3% जनसंख्या वाले कुर्मी समाज से नितीश कुमार पिछले 12 वर्षों से लगातार बिहार पर राज कर रहे हैं, इन्होंने इस कार्यकाल में अपने समाज को जमकर लाभ पहुंचाया और इनके कार्यकाल में राजपूतों को जमकर उपेक्षित किया गया, इन्होंने भूमिहारो को साथ रखकर राजपूतों को दरकिनार करने का पूरा प्रयास किया।

बिहार में 7% जनसंख्या वाले ब्राह्मण समाज ने भूमिहारो के साथ क्षत्रिय विरोधी गठबंधन बनाकर बिहार में 13 वर्ष तक शासन किया,

बिहार में 13% जनसंख्या वाले अहीर/ग्वाला समाज ने लालू प्रसाद के नेतृत्व में बिहार में लगातार 16 वर्ष राज किया और जमकर अपने समाज का भला किया, इनके राज में बिहार में सब जगह अहीरों का बोलबाला रहा,
कुछ राजपूतो को इन्होंने अपने साथ जोड़ा पर लालू प्रसाद स्वाभाविक रूप से राजपूतो के घोर शत्रु थे,इनका कार्यकाल राजपूतों और भूमिहारो का पतनकाल रहा।

इस प्रकार बिहार में अहीर और भूमिहार लम्बे समय तक सत्ताधारी रहे जिससे इनका वर्चस्व बढ़ा और इनका आर्थिक विकास बढ़ा,वहीँ पर्याप्त जनसंख्या होते हुए भी राजपूत सदैव उपेक्षित रहे।

कभी भूमिहार-ब्राह्मण तो कभी अहीर-कुर्मियों के शासन में राजपूत समाज को उभरने का मौका ही नही मिला।

गत बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से संकेत दिया गया कि इस बार राजेन्द्र सिंह को बीजेपी की ओर से सीएम उम्मीदवार बनाया जाएगा जिससे लगा कि बिहार में फिर से स्वर्णो के दिन बहुरेंगे, और लम्बे समय से उपेक्षित राजपूत समाज को मौका मिलेगा,
मगर तभी भूमिहार नेता गिरिराज सिंह ने द्वेषवश बयान दिया कि बीजेपी का मुख्यमंत्री पिछड़े समाज से होगा,
मोदी जी भी आरक्षण व्यवस्था बचाने के लिए जान की बाजी लगा दूंगा जैसा घटिया बयान दे बैठे,
बेचारे राजेन्द्र सिंह मुख्यमंत्री तो क्या बनते विधानसभा चुनाव ही हार बैठे।

स्वर्णो की फुट से बीजेपी हार गयी ,राजपूतों को नीचा दिखाने के चक्कर में स्वर्णो ने अपना ही विनाश कर लिया।।