Saturday, September 3, 2016

राजपूताने के क्षत्रिय शेर देवीसिंह भाटी जिसने समाजहित में सर्वस्व न्यौछावर कर दिया

राजस्थान के क्षत्रिय शेर देवीसिंह भाटी----

देवीसिंह भाटी राजस्थान के राजपूत नेताओं में उन गिने चुने नामो में एक हैं जिन्होंने राजपूत कौम की भलाई के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया,
देवीसिंह भाटी जमीन से जुड़े हुए नेता है और धरतीपुत्र कहे जाते हैं,राजपूत आरक्षण के लिए जितनी जोरदार लड़ाई उन्होंने लड़ी उसने पुरे देश को हिला दिया था,
अगर समाज के गद्दार विश्वासघात न करते तो 2003 में राजपूतो को आरक्षण मिल गया होता और उसके बाद देशभर में राजपूत समाज को आरक्षण का लाभ मिलता,जिससे लाखो युवा बेरोजगार होने से बच जाते।।

जन्म और राजनीति की शुरुवात---
आपका जन्म 31 मई 1945 को हुआ था,
आप 1980 में पहली बार कोलायत विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए और लगातार 33 साल विधायक रहे,
कई बार भैरोसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री भी रहे,ये जनता पार्टी,जनता दल,बीजेपी और निर्दलीय लगातार जीतते रहे।
पर कभी स्वाभिमान से समझोता नही किया।
उनके पुत्र महेंद्र सिंह भाटी 1996 में बीकानेर से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद चुने गए थे,

किन्तु उसके बाद इनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब 1998 में विधानसभा चुनाव के तुरन्त बाद इनकी पत्नी और छोटे पुत्र रविन्द्र सिंह की सड़क दुर्घटना में दुखद मृत्यु हो गयी।।

एक समय देवीसिंह भाटी जी भैरोसिंह शेखावत के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे,
वो उस समय राजस्थान में सबसे दबंग और लोकप्रिय राजपूत नेता थे,

लेकिन उन्होंने निज स्वार्थ की राजनीती करने की बजाय राजपूत समाज के मान सम्मान और उन्नति की लड़ाई लड़ी,और अपना राजनैतिक कैरियर दांव पर लगा दिया।

जाटों को वाजपेयी/वसुंधरा द्वारा ओबीसी आरक्षण----
अक्टूबर 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा वोटबैंक की गन्दी राजनीति के चलते जाटों को भी ओबीसी आरक्षण दे दिया गया था ,जिससे जाटों ने सारा मूल ओबीसी कोटा अकेले ही चट कर दिया और मूल ओबीसी जातियों का सरकारी भर्तियो में सफाया हो गया,
ओबीसी आरक्षण के दम पर जाटों ने पंचायत/स्थानीय निकाय के प्रधान/सरपंच/जिला प्रमुख पदों का बड़ा हिस्सा कब्जा लिया।

तब स्वर्णो और मूल ओबीसी के हको की लड़ाई लड़ने को देवीसिंह भाटी ने सामाजिक न्याय समिति बनाकर उपेक्षित को आरक्षण व् आरक्षित को संरक्षण का नारा दिया और बड़ी रैलियां आयोजित की।
उन्होंने राजपूतो को भी आरक्षण दिलाने को जोरदार लड़ाई लड़ी।।जिसने सरकार को हिला दिया,

इस सम्बन्ध में अमरूदों का बाग़ जयपुर में आयोजित एक रैली में 5 लाख राजपूतो ने भाग लिया और प्रदेश सरकार हिल गयी,बीजेपी सरकार ने मजबूरी में राजपूतो को भी 27% ओबीसी कोटे में शामिल करने  की तयारी कर ली,
लेकिन तभी राजस्थान में वसुंधरा की बीजेपी सरकार ने कुछ गद्दार राजपूतों को पद का लालच दिखाकर अपनी ओर मिला लिया,

तब प्रताप फाउंडेशन जैसे संगठनो,राजेन्द्र सिंह राठौर,भवानी सिंह राजावत,लोकेन्द्र कालवी ,जैसे कई नेताओं ने उस दिन जो आचरण किया और उसके जो परिणाम राजपूतो के लिये हुए वो खानवा के युद्ध में बाबर के हाथो राणा सांगा की हार से भी ज्यादा भयानक थे!!!😢😢

नतीजा--------
राजपूत आरक्षण आंदोलन फ्लॉप हो गया,
और इसके साथ ही देवी सिंह भाटी की राजनीती चौपट हो गयी।।।

अमरूदों का बाग़ की विनाशकारी रैली के बाद ही 2003 में देवी सिंह भाटी को निजी आघात ऐसा लगा कि वो बिलकुल टूट गए,
उनकी पत्नी और छोटे पुत्र रविन्द्र सिंह की तरह ही उनके पुत्र पूर्व सांसद महेंद्र सिंह भाटी जी का भी एक संदिग्ध सड़क दुर्घटना में स्वर्गवास हो गया!!!!!!!

इस आघात ने उन्हें तोड़कर रख दिया उसके बाद वो उबर नही पाए,महेंद्र सिंह के पुत्र आयुष्मान सिंह भाटी अब युवा हो गए हैं और अपने दादा देवीसिंह भाटी जी से राजनीती/समाजसेवा के गुर सीख रहे हैं

यह क्षत्रिय शेर अब बुजुर्ग हो गए हैं लेकिन समय समय पर अपने तेवर दिखाकर सरकार को झुकाने और अपने क्षेत्र/समर्थको की लड़ाई लड़ने में पूर्ण सक्षम हैं।

काश राजपूत समाज में चन्द गद्दार न होते????
काश पुरे राजपूत समाज ने उस समय देवीसिंह भाटी का साथ दिया होता!!!!!

अमरूदों का बाग़ की रैली के गद्दार आज भी राजनैतिक दलों और सामाजिक संगठनो में बड़े पदों पर बैठकर समाज को धोखा दे रहे हैं ,
हाल ही में चतरसिंह हत्याकांड मुद्दे पर भी इन्ही काली भेड़ो ने वसुंधरा सरकार का दलाल बनकर समाज के आंदोलन को कुचलने का कुचक्र रचा है।।

इन्ही काली भेड़ो ने जोधा अकबर के मुद्दे पर भी समाज को धोखा दिया था,
इन्होंने ही राजपूत आरक्षण आंदोलन की धार को कुंद किया और खुद के ही बनाए करणी सेना नाम के संगठन को बर्बाद कर दिया।।

और यही काली भेड़ें हाल ही में समाज से बहिष्कृत महल की स्वार्थ की लड़ाई में उनका साथ देती दिखाई दी,क्योंकि उससे इनके भी स्वार्थ जुड़े थे वहीँ लाङनु में गरीब राजपूत घर की बेटी नीतू राठौर ,
जिसने जाट छात्रो और अध्यापक के उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी ,
उसका परिवार आज भी न्याय की बाट जौह रहा है क्योंकि राजपूत संगठन महल की लड़ाई लड़ने में व्यस्त है !!!!!

काश राजस्थान में कुछ और देवीसिंह भाटी होते!!!!!!!

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